आंखों में स्वाध्याय और सत्संग का अंजन होना चाहिए : मनितप्रभ

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म.सा. सूरत।

श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन पाल में चातुर्मास काल में युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. जी का पावन सान्निध्य प्राप्त कर सूरतवासी एक ओर जहां धर्म गंगा का अपने शहर में लाभ उठा रहे है वहीं अब चातुर्मास संपन्नता के कुछ ही दिन शेष होने से मानों गुरूदेव के मंगल विहार की घड़ियां श्रद्धालु दिलों को भावुक कर रही हैं। अनेकों शिविरों, कार्यक्रमों के साथ ज्यों क्यों एक एक दिन बीत रहा है सूरतवासी भी अपने आराध्य की उपासना के एक एक क्षण से मानों चूकना नहीं चाहते।

हजारों श्रद्धालु श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन पाल में आचार्यश्री एवं साधु साध्वियों से तत्व–जिज्ञासा, धर्म श्रवण करने हेतु उपस्थित रहते है। गुरुवार 7 नवंबर को प्रवचन में मनितप्रभ म.सा. ने कहा कि जीवन में कौनसा पल अंतिम होगा ऐसी बुद्धि ज्ञान व्यक्ति के पास नहीं है। सभी को हीरा बनाना है। अपना मूल्यांकन किए बिना हमने बहुत सारे भव गवा दिए।हम हीरे को कंकर समझते रहे और कंकर को हीरा समझते रहे। कुछ पल का आनंद, नश्वर सुखों के लिए अपना जीवन गवा रहे हैं। बीते हुए दिन वापस नहीं आते हैं, गई जवानी वापस नहीं लौटी है, डूबता हुआ सूरज वापस नहीं उगता है और मुरझाया हुआ फूल वापस नहीं खिलता है।

बाह्य व्यवहार तो बदलने चाहिए, साथ-साथ अंततरंग स्वभाव परिवर्तन परिमार्जन जरूरी है। बाकी सब चीजों की चिंता छोड़कर आत्मा और भविष्य की चिंता करनी है। पदार्थ अपने स्वभाव में लीन रहते है। प्रेम का रिश्ता होता है तो आत्मा का रिश्ता जोड़ता है। वस्तु का मूल्य होने पर ही उसे पूछा जाता है। पुण्यशाली होते हैं जिन्हें गुरु भगवंत याद रखते हैं। आंखों में स्वाध्याय और सत्संग का अंजन होना चाहिए।

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