सूरत
अडाजण के युवा कपड़ा ब्रोकर ने कल रात फासी लगा कर आत्महत्या कर ली। लॉकडाउन के कारण बीते कई दिनो से आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहे थे। इस कारण उन्होंने आर्थिक समस्या के कारण यह कदम उठाया ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है।
न्यू सिविल से मिली जानकारी के अनुसार अडाजण में सरस्वती विद्यालय के पास अभिनव अपार्टमेंट में रहने वाले 42 वर्षीय संजयभाई शोभराज बतानी की गुरूवार को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।
संजयभाई के एक परिचित ने कहा कि संजयभाई रिंग रोड के कपड़ा बाजार में कपड़ा ब्रोकरेज कारोबार से जुड़े थे। दो महीने से लॉकडाउन होने से कारोबार बंद होने के कारण वह आर्थिक परेशानी में था। इसलिए आर्थिक संकट के कारण उन्होंने फांसी लगा ली ऐसी आशंका है। अडाजण पुलिस ने इस संबंध में जांच शुरू की है।
उल्लेखनीय है कि लॉकडाउन मे दो महीने तक व्यापार उधोग बंद होने के कारण सभी कारोबारियों की हालत खराब हो गई है।कई लोग बुरी तरह से आर्थिक संकट में फंस हए हैं। लॉकडाउन के कारण कई लोगों ने डिप्रेशन की शिकायतें भी डॉक्टर्स से की है। कुछ लोग डिप्रेशन दूर करने को दूर करने के लिए योग आदि का सहारा ले रहे हैं। यदि लॉकडाउन और बढता है तो लोगों की समस्या और बढ सकती है।
श्रमिकों की कमी अखरेगी, सूरत के उद्योग को
सूरत से अब तक 12 लाख से ज्यादा श्रमिक अपने गांव लौट चुके हैं और दो-चार दिन में बड़ी संख्या में श्रमिक वापस लौट जाएंगे। ऐसे में प्रशासन की ओर से औद्योगिक इकाइयों और बाजार को शर्तों के साथ खोले जाने की छूट भी बिना किसी मायने की साबित होगी।
सूरत के लूम्स, प्रोसेसिंग मिल, एम्ब्रॉयडरी व इनसे जुड़े घटकों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष ढंग से 10 लाख से ज्यादा लोग काम करते हैं इसी तरह रिंग रोड के कपड़ा बाजार में भी 700000 से अधिक लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष ढंग से रोजगार पाते हैं। दो महीने से लॉकडाउन के कारण व्यापार धंधा बंद होने से बेरोजगार श्रमिकों के पास फूटी कौड़ी नहीं बची थी। ऐसे में वह अपना जीवन यापन करने के लिए गांव जाने को मजबूर थे।
अब तक सूरत से अन्य राज्यों के लिए लगभग 400 ट्रेन जा चुकी है। जिसमें की सबसे ज्यादा ट्रेन यूपी की है। इसके बाद बिहार और उड़ीसा के श्रमिकों का नंबर आता है। कुल मिलाकर सूरत में काम करने वाले ज्यादातर श्रमिक उत्तर प्रदेश, बिहार,उड़ीसा आदि राज्यों के हैं जो कि अब तक 60 फ़ीसदी तक अपने गांव चले गए हैं। इन श्रमिकों के बिना उद्योगों को चल पाना एक कल्पना करने के बराबर है।
सरकार की ओर से लोग गांव में कुछ शर्तों के साथ कंटेंटमेंट जोन के बाहर व्यापार उद्योग खोलने की छूट दी गई है। संभवत 1 तारीख के बाद कपड़ा बाजार भी खुलने की संभावना है। यदि ऐसा ही कुछ रास्ता पहले भी हो जाता तो इतनी बड़ी संख्या में श्रमिकों को पलायन करने का नौबत नहीं आती। जो श्रमिक गांव जा रहे हैं।
एक अंदाज के अनुसार इसमें से पांच से 10 प्रतिशत श्रमिक सूरत ही छोड़ देंगे। अन्य श्रमिकों की बात करें तो कुछ श्रमिक तो दिवाली तक सूरत में दर्शन नहीं देंगे। इसके बाद शादी ब्याह का सीजन शुरू हो जाएगा। तब भी वह सूरत आएंगे कि नहीं कोई भरोसा नहीं। हालांकि जिन लोगों के सामने शहरों के अलावा और कोई रास्ता नहीं है उन्हें तो आना ही पड़ेगा।
यह मान के चलिए की सूरत के व्यापार उद्योग को फिर से पहले जैसा होने में समय लग जाएगा। कपड़ा उद्यमियों का कहना है कि उन्होंने श्रमिकों को रोकने का प्रयास तो किया लेकिन श्रमिक इस कदर व्याकुल थे कि उन्हें सिर्फ अपने गांव जाने की ही सूझ रहा थी। ऐसे में उद्यमियों ने की व्यवस्थाएं भी नाकाफी साबित हो रही थी।
सूरत के लूम्स , एंब्रॉयडरी प्रोसेसिंग यूनिट सहित कपड़ा उद्योग के तमाम घटकों में अन्य राज्यों के श्रमिकों का महत्वपूर्ण योगदान है। अब इनकी चमक तभी लौटेगी एक बार दोबारा फिर से सूरत की ओर रुख करेंगे।