अणुव्रत वर्तमान जीवन को अच्छा बनाने वाला विशिष्ट उपक्रम है — आचार्य श्री महाश्रमण

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युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य से संयम विहार से प्रसारित होने वाली अध्यात्म किरणें जन जन के हृदय को धर्म से आलोकित कर रही है। आचार्यश्री की सन्निधि में अणुव्रत विश्व भारती द्वारा आज अणुव्रत पुरस्कार समारोह आयोजित हुआ जिसमें इंटरनेशनल कोर्ट के जस्टिस पद्मभूषण दलवीर सिंह भंडारी को वर्ष 2024 के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आज के इस अवसर पर राष्ट्रीय संस्कार निर्माण शिविर का भी समापन सत्र आयोजित हुआ। जिसमें बालक बालिकाओं को आचार्य प्रवर द्वारा प्रेरणा पाथेय प्राप्त हुआ।

मंगल देशना में गुरुदेव ने कहा – संसार के समस्त प्राणियों को अपनी आत्मा के समान समझो। व्यक्ति सुख की आकांक्षा करता है। दूसरे प्राणी भी सुख चाहते है। मैं दु:ख पसंद नहीं करता तो दूसरे प्राणी भी दु:ख से दूर रहना चाहते हैं। यह अहिंसा का चित्त है। व्यक्ति बिना मतलब किसी अन्य प्राणी को कष्ट ना पहुंचाएं। व्यक्ति जीवन जीता है, पदार्थों का उपयोग करता है। जीवन चलाने के लिए भोजन, पानी, हवा चाहिए। कपड़े, मकान अन्य भौतिक वस्तुओं की भी अपेक्षा होती है। यह सभी जीवन की आवश्यकताएं हैं और इनकी पूर्ति करने में कुछ हिंसा भी हो सकती है। जैन दर्शन के अनुसार मिट्टी भी सजीव हो सकती है, पानी की एक बूंद में असंख्य जीव बताए गए है, अग्नि, वायु भी जीव हैं और वनस्पति का जीवत्व तो प्रसिद्ध है। सूक्ष्म जीव है, मक्खी, मच्छर, पशुओं को प्राणी रूप मानते है। पर यह गहरी बात है कि सूक्ष्म जीव, स्थावर काय जीवों की हिंसा से भी जितना हो सके बचाव हो।

आचार्य श्री ने आगे जैन धर्म के इतिहास से जुड़े प्रसंग बताते हुए फरमाया कि तेरापंथ की स्थापना आचार्य भिक्षु द्वारा लगभग 264 वर्ष पूर्व हुई। अभिनिष्क्रमण के पश्चात उनके साथ तेरह साधु थे। जोधपुर में एक जगह तेरह श्रावक एक दुकान में सामायिक कर रहे थे। एक सेवक कवि ने तब दोहे की रचना कर तेरहपंथ नामकरण किया लेकिन आचार्य भिक्षु ने संख्या से नहीं बल्कि – हे प्रभो यह तेरापंथ कहकर इसे मान्य किया और प्रभु का पंथ बताया। हे प्रभो ! यह आपका पंथ है, हम तो इस पर चलने वाले राही हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जब मुख्यमंत्री थे तब सूरत में ही आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के दर्शन करने आए तब उन्होंने कहा – यह तेरापंथ, मेरापंथ है। धर्मसंघ के नवम आचार्य तुलसी ने धर्म को व्यापकता प्रदान करने के लिए 75 वर्ष पूर्व अणुव्रत आंदोलन का प्रारंभ किया, जो किसी सम्प्रदाय से बंधा नहीं है। छोटे छोटे व्रतों द्वारा अणुव्रत मानव जीवन के सुधार की बात करता है। अणुव्रत जनता में नैतिकता, संयम की बात को फैलाने का कार्य कर रहा है। अणुव्रत के साथ आस्तिक ही नहीं नास्तिक भी जुड़ सकता है। क्योंकि अणुव्रत लोक परलोक की बात नहीं करता, वह तो वर्तमान जीवन को अच्छा बनाने की बात करता है।अणुव्रत के सिद्धांतों को लागू किया जाए तो दुनिया की काफी समस्याओं का समाधान संभव है।
अणुव्रत पुरस्कार से सम्मानित पद्मभूषण जस्टिस श्री दलबीर सिंह भंडारी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि अणुव्रत की विशेषता है कि इसमें जीवन को संयमित करना सिखाया जाता है। संयम जीवन में आ जाए तो कितनी चीजों का समाधान हो सकता है। अणुव्रत पुरस्कार के महत्ता में समझता हूं। पूर्व में राष्ट्रपति डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा, गुलजारीलाल नंदा, पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह, पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे. अब्दुल कलाम जैसे महानुभावों को यह पुरस्कार दिया गया है। इसी श्रृंखला में जुड़कर में भी गौरव की अनुभूति कर रहा हूं।

कार्यक्रम में साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी ने उद्बोधन प्रदान किया। “शासन श्री” साध्वी श्री विमलप्रज्ञा जी की आत्मकथा ‘ परिक्रमा परमार्थ की’ जैविभा के पदाधिकारियों द्वारा गुरु चरणों में निवेदित की गई। साध्वीश्री ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। अणुविभा के श्री प्रताप दूगड़, अध्यक्ष श्री अविनाश नाहर, टी.के. जैन ने अपने विचार रखे।

आज के अवसर पर जैन श्वेतांबर तेरापंथ महासभा के तत्वाधान में तेरापंथ सभा सूरत, उधना द्वारा आयोजित संस्कार निर्माण शिविर का समापन समारोह आयोजित हुआ। मुनि श्री जितेंद्र कुमार ने शिविर के संदर्भ में विचार रखे। शिविरार्थी द्विवित संचेती, जयश्री नाहटा ने अनुभव व्यक्त किए। श्री प्रवीण मेडतवाल ने पुरस्कारों की घोषणा की। तत्पश्चात श्रेष्ठ शिविरार्थी बालक–बालिकाओं को पुरस्कार प्रदान किए गए।

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