सूरत। जन-जन को सन्मार्ग दिखाने के लिए, मानव-मानव में मानवता का संचार करने वाले युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. वर्तमान में डायमण्ड व सिल्क सिटी के नाम से मशहूर शहर सूरत के पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन पाल में अपना वर्ष 2024 का चतुर्मास कर रहे हैं।
आज शुक्रवार 11 अक्टूबर को प्रवचन में मनितप्रभ म.सा. ने कहा कि भीतर की शांति और बाहर की शांति दोनों की अनिवार्यता है। भीतर में कलह है तो बाहर की शांति कोई मायने नहीं रखती है। और बाहर अशांति है तो भीतर की शांति को नुकसान पहुंचता है। ज्ञान के बिना कोई प्रवृत्ति नहीं होती है। चारित्र के बिना कोई मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। चारित्र शुद्ध भावों वाला और आत्मा को स्पर्श करनेवाला होना चाहिए।
मनितप्रभ म.सा. ने सिद्धिपद और आचार्य पद के बारे में समझाते हुए कहा कि हर श्वासोंश्वास में साढ़े सतत्रह बार जन्म मरण है। दो सांस में 35 भव हो जाते है। हम जीव अविरती का पाप, अपच्चखान का पाप। दुगुर्णो के कारण पाप है। मनितप्रभ म.सा. ने कहा कि सिद्ध भगवान का वर्ण लाल रंग है। हमारे शरीर में सात धातु है जिसमें से रक्त ऐसा है जो हमारे शरीर को गतिशील रखता है।