1 जुलाई से शुरू हो रहा चातुर्मास! जानिए सनातन धर्म में क्या है महत्व!

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सनातन धर्म अर्थात हिंदू धर्म में यद्यपि अनेकों व्रत एवं उपवास की तिथियां हैं परंतु इन सब में महान पुण्य देने वाला व्यक्ति को जीवन मरण के बंधन से मुक्तकरने वाला गृहस्थ जीवन को सवांरने वाला4 महीने का एक विशेष पुण्य काल भी है।इसी काल को चातुर्मास के नाम से जाना जाता है।

जैन मतों में भी इस चातुर्मास काल की विशेष प्रशंसा की गई है।तपस्वी जैन मुनि इस काल में अत्यंत निष्ठा पूर्वक विविध प्रकार के नियमों का पालन करते हैं व जनता को विविध प्रकार के धर्म आदि के उपदेश भी करते हैं।


इसी काल में भाद्रपद मास में श्वेतांबर व दिगंबर दोनों जैन पंथों द्वारा पर्यूषण पर्व मनाया जाता है।हिंदू व जैन दोनों धर्मों के अनुसार चातुर्मास का पर्व निष्ठा तपस्या स्वाध्याय मनन चिंतन एवं शांति का समय है इस समय में किया हुआ व्रत अनंत पुण्य प्रदान करता है।


जो भी धार्मिक व्यक्ति अन्य समूहों में किसी कारण वश अपने धार्मिक आचरणों का पूर्णत: परिपालन नहीं कर पाते वह इस काल में अपने धर्म कर्म को पूर्णत: पालने का प्रयास करते हैं।हिंदू धर्म के मतानुसार देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चार महीनों के लिए जल में शयन करते हैं।


श्रावण भाद्रपद अश्विन एवं कार्तिक इन 4 महीनों में भगवान विष्णु की पूजा तथा नमक रहित अन्न का सेवन अत्यंत उच्च फल देता है।
चातुर्मास में गृहस्थ एवं सन्यासी अपनी अपनी कामना के अनुसार विशेष व्रतों का पारायण करते हैं ।हर व्यक्ति को प्रयत्न करके चतुर्मास में कोई ना कोई विशेष नियम जरूर पालन करना चाहिए।


चातुर्मास पालन से प्राप्त होने वाले कुछ विशेष फल इस प्रकार हैं ।
१)सर्वप्रथम व्यक्ति को इस महीने में पूर्ण शाकाहार का पालन करना चाहिए।इससे व्यक्ति जन्म जन्मांतर तक भगवान विष्णु के चरणों का भक्त बना रहता है।
२)जो केवल कंदमूल का भोजन करके 4 महीने वितरित करते हैं। वह धनी होते हैं। जो व्यक्ति 4 महीने एक समय ही भोजन करते हैं। वह धनवान रूपवान और जग में सम्मान प्राप्त करते हैं।
३)जो 1 दिन का अंतर देकर भोजन करते हुए चातुर्मास व्यतीत करते हैं।वह सदा बैकुंठ धाम में निवास करते हैं।
४)6 दिन में एक बार भोजन करने वाले को अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।
५)जो व्यक्ति 4 महीनों में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं।वह स्वर्ग लोक में जाते हैं। ६)जो 4 महीने नमकीन वस्तुओं एवं नमक का त्याग करते हैं। उनके सभी कर्म सफल होते हैं।
७) जो चौमासे में प्रतिदिन स्वाहा के साथ विष्णु सूक्त के मंत्रों की तिल और चावल से आहुति देते हैं वह कभी रोगी नहीं होते।
८)जो स्नान के पश्चात पुरुष सूक्त का जप करते हैं।उनकी बुद्धि बढ़ती है।
९)चौमासे के अंतिम मास कार्तिक मास में श्रेष्ठ ब्राह्मणों को मीठा भोजन कराने से अग्निष्टोमय यज्ञ का फल मिलता है ।
१०)4 महीनों तक नियमित रूप से वेदों का अध्ययन करने एवं भगवान विष्णु की आराधना करने से व्यक्ति सर्वदा विद्वान होता है।
चातुर्मास के संबंध में विशेष जानकारी व शंका समाधान हेतु आप वेबसाइट पर संपर्क कर सकते हैं।

प्रस्तुति :आचार्य शरद चंद्र मिश्र।
m.a. संस्कृत साहित्य
कर्मकांड एवं ज्योतिष विशारद ।
9272445900