दिन में भेद हो, लेकिन दिलों में भेद नहीं होना चाहिए : आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा.

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  • चातुर्मास का अंतिम दिवस, दिनभर लगा रहा श्रद्धालुओं का तांता
    सूरत। शहर के पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन पाल में युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. जी का सूरत चातुर्मास अपने आप में ऐतिहासिक एवं चिरस्मरणीय रहा। सूरत वासियों के लिए ये चार माह कब चार दिवस की भांति निकल गए पता ही नहीं चला। हर श्रावक–श्राविका की दिल की यही ख्वाहिश की इस चातुर्मास की संपन्नता आए ही नहीं। अपने आराध्य का पावन सान्निध्य एवं साधु साध्वियों की दर्शन सेवा, धार्मिक उपासना का चार माह लाभ प्राप्त कर भी यह समय कम प्रतीत हो रहा था। शुक्रवार 15 नवंबर को आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. ने कहा कि भावनाओं से ही केवल ज्ञान होता है। दान, तप, शील और भाव चार प्रकार के धर्म है। इसमें कोई महत्वपूर्ण है तो वह है भाव धर्म। भाव सब में है। आचार्यश्री ने कहा कि दिन में भेद हो, लेकिन दिलों में भेद नहीं होना चाहिए। सूरत में सहस्त्रफणा पार्श्वनाथ तीर्थ की बात ही कुछ निराली है। अति प्राचीन हरिपुरा दादावाडी है। दादावाडी विकास योजना का प्रारंभ किया जाएगा। जिसमें व्यवस्थित उपाश्रय, धर्मशाला, भोजन शाला का निर्माण किया जाएगा। तीन योजनाएं तय किए है, जिसमें कमरे बनेंगे। इसके अलावा स्तंभ की योजना बनाई है। आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. ने मुमुक्षु भावना संकलेचा का मुहुर्त प्रदान किया। आचार्यश्री अपने सहवर्ती साधु साध्वी समुदाय के साथ सुबह पाल से मंगल विहार करके रिवर हाइटस पधारेंगे।

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