ग्रंथ से ज्ञान, संत से सद्ज्ञान व पंथ से पथदर्शन हो सकता है प्राप्त : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

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-पशुपतिनाथ मंदिर-नेपाल के पहुंचे ग्यारह सदस्यों ने किए आचार्यश्री के दर्शन

-सूरत ज्ञानशाला व अहमदाबाद ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने दी अपनी-अपनी प्रस्तुति

13.10.2024, रविवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :

एक समय था जब जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने वर्ष 2024 के चतुर्मास की घोषणा के लिए वर्ष, दिनांक, समय आदि का निर्धारण कर दिया था। कितने-कितने क्षेत्र छापर में इस अवसर पर अपनी-अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज कराई थी, लेकिन जब युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने लॉटरी खोली तो डायमण्ड नगरी सूरत के नाम से। तब से सूरतशहरवासी अपने आराध्य की प्रतीक्षा में थे। लगभग इक्कीस वर्ष के बाद डामण्ड सिटी ऐसा सौभाग्य प्राप्त कर डायमण्ड-सी चमचमाने लगी। वर्ष 2024 में वह प्रतीक्षा पूर्ण हुई सूरतशहरवासियों की सिल्क-सी भावनाएं फलीं और अपनी धवल सेना के साथ आध्यात्म जगत के महासूर्य उदित हुए तो डायमण्ड नगरी आध्यात्मिक नगरी बन गई है। सेवारत सूरतशहरवासी प्रसन्नतावश अपने आराध्य की सेवा में निरंतर जुटे रहे और समय रेत की भांति फिसलता गया। अब सूरत चतुर्मास धीरे-धीरे पूर्णता की ओर बढ़ रहा है। आगे की यात्रा का मार्ग भी प्रायः आचार्यश्री द्वारा घोषित हो चुका है। ऐसे में सूरतशहरवासी समझ ही नहीं पा रहे हैं, यह समय कैसे व्यतीत हो गया। 

बावजूद इसके प्रतिदिन के अतिरिक्त रविवार को चतुर्मास स्थल में जनता का पारावार उमड़ आता है। आज भी रविवार तो जनता की उपस्थिति से विशाल महावीर समवसरण जनाकीर्ण बना हुआ था। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी मंच पर विराजमान हुए। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखाजी ने उपस्थित जनता को मंगल प्रतिबोध प्रदान किया। 

तदुपरान्त महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जनता को ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि आगमों में अनेक प्रकार के विषय वर्णित हैं। एक ओर तत्त्व विद्या संबंधी बातें तो कथानक और पथदर्शन के संदर्भ में बात प्राप्त होती है। धर्म प्रवचन के संदर्भ में कुछ दिशा-निर्देश प्राप्त होता है। गृहस्थ भी भाषण देते हैं और साधु-संन्यासी भी कथा प्रवचन करते हैं। यहां बताया गया कि चाहे धनवान हो या गरीब, पुण्यवान हो पापी दोनों के मध्य वह प्रवचन करता है। क्योंकि पथदर्शन की आवश्यकता तो दोनों को होती है। साधु और संन्यासियों की बातों का प्रभाव अधिक होता है। साधु-सन्यासी की बातों का जनता कुछ ध्यान से सुनती है। प्रवचन करना भी साधु की जिम्मेदारी होती है। जहां भी जाएं, वहां धर्मकथा करने का प्रयास करना चाहिए। कथा से लोगों को जीवन का पथदर्शन प्राप्त हो सकता है। संयम, अहिंसा, नैतिकता, ईमानदारी आदि की बातों को सुनकर लोगों के दिमाग वह बात आ भी सकती है। प्रवचन को सुनना भी एक कला है। 

भारत में रामायण, महाभारत, भगवती, आयारो, श्रीमद्भगवद्गीता आदि-आदि कितने ग्रंथ हैं। इनसे कितना ज्ञान प्राप्त हो सकता है। इतने संतों से सद्ज्ञान प्राप्त हो सकता है। इतने पंथ हैं तो पंथों से पथदर्शन प्राप्त हो सकता है। आचार्यश्री ने राम नाम की महिमा, रामायण की कथाओं आदि का वर्णन करते हुए विजयादशमी के संदर्भ में उपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान किया। 

डाकलिया परिवार ने आचार्यश्री के समक्ष गीत के माध्यम से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। अंतर्राष्ट्रीय भगवताचार्य पंकजदासजी व्यासजी ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति दी। पशुपतिनाथ मंदिर-नेपाल के व्यवस्था समिति के ग्यारह सदस्यों ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में प्रेरणा प्रदान की। कलरएक्स के मालिक श्री जयंतीभाई कबूतरवाला ने अपनी अभिव्यक्ति दी। 

तुलसी अमृत निकेतन संस्थान-कानोड़ की ओर से श्री कल्याणसिंह पोखरना ने अपनी अभिव्यक्ति दी। श्री कांतिलाल पीपाडा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। सूरत ज्ञानशाला ने अपनी प्रस्तुति दी। अहमदाबाद-ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने भी अपनी प्रस्तुति दी।

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