उम्मीद: सूरत सिविल हॉस्पिटल में प्लाज़्मा थैरेपी से उपचार शुरू

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कोरोना मरीजों को ठीक करने के लिए सिविल अस्पताल में अब प्लाजमा थेरेपी देने की शुरुआत की जा रही है। सिविल हॉस्पिटल में 9 डॉनर्स में से एक का प्लाज्मा चढ़ाया जा रहा है। जिस मरीज को प्लाज्मा चढ़ाया जाएगा उसे 2 दिन तक प्लाजमा का डोज दिया जाएगा और बाद में मरीज की स्थिति कैसी है यह पता किया जाएगा।

देश में कोरोना के मरीजों के लिए प्लाजमा थेरेपी असरकारक है। ऐसा माना जा रहा है। इसके पहले सिविल हॉस्पिटल में प्रायोगिक तौर पर एक गंभीर मरीज के ऊपर प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया गया था लेकिन, वह सफल नहीं था। गंभीर हालत में कोरोना मरीज के ऊपर इस थेरेपी का उपयोग किया गया लेकिन उसे नहीं बचा सके।

कोरोना रोग शुरू हुआ तब से दुनिया भर में अभी तक इसकी कोई दवा नहीं बन सकी है। प्लाजमा थेरेपी ने लोगों को नई राह दिखाई है। हॉस्पिटल के ब्लड बैंक में मरीजों से प्लाज़्मा डोनेशन 3 मई से शुरू किया गया है। इस बारे में ब्लड बैंक के इंचार्ज डॉक्टर मयूर जनक ने मीडिया को बताया कि आधुनिक मशीनों के माध्यम से कोरोना से ठीक हुए मरीजों से प्लाज्मा लिया जाता है।

डॉनर्स के पास से प्लाज्मा लेते समय आईसीएमआर और एनबीटीसी की गाइडलाइन का पालन किया जाता है। प्लाज्मा लेते समय डोनर के एंटीबॉडी स्क्रीनिंग टेस्ट भी की जाती है। कोरोना मरीजों में से एंटीबॉडी डेवलप होती है। तभी प्लाजमा लिया जाता है। अब तक कुल 9 लोगों का प्लाज्मा लिया जा चुका है। इसमें से एक दोबारा दिया है। शहर में प्लाज्मा डोनेशन के बाद प्लाज्मा देने की भी शुरुआत की गई है।

सोमवार को उमेश जोशी नाम के एक व्यक्ति ने को प्लाजमा थेरेपी शुरुआती गई। उसे मंगलवार को दूसरा डोज दिया गया। आगामी दिनों में उमेश की तबीयत कैसी रहती है। यह देखा जाएगा। डॉक्टर ने बताया कि वह अधिक से अधिक डॉनर्स को ढूंढ रहे हैं। आपको बता दें कि प्लाजमा डोनेशन भी डोनेशन जैसे ही प्रक्रिया है। यह डिस्पोजेबल स्टाइरल ऑटोमेटिक ढंग से लिया जाता है।

रक्तकणों को मशीन में प्रवाही से अलग किया जाता है। और मरीज के शरीर में फिर से डाल दिया जाता है। एक बार में 500 मिली प्लाज्मा ले सकते हैं। यह बहुत ही सरल और सलामत प्रक्रिया है डोनर 15 दिन के बाद फिर से प्लाज्मा दे सकता है। जिनकी उम्र 18 साल हो और वजन 55 किलो अधिक हो डोनेट कर सकते हैं।