कोरोना के कारण जहां उद्यमी पहले से ही परेशान है वहां धीरे धीरे व्यापार खोलने से उनकी समस्याएं तो हल हो रही है लेकिन, अभी भी उनको कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
चेंबर ऑफ कॉमर्स की ओर से मंगलवार को इंश्योरेंस इस इश्यूज विषय पर आधारित पर वेबिनार में नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के चीफ रीजनल मैनेजर के.के रैना उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन डाउन के दौरान बंद कंपनियों में जो नुकसान होगा उसका कोई क्लेम नहीं मिलेगा। हालांकि बेजिक पॉलिसी के अंदर लॉस ऑफ प्रॉफिट लिया होगा तो उसके अंतर्गत फैक्ट्री में आग के दौरान जो नुकसान होता है उससे नुकसान का क्लेम मिल सकता है।
इसी तरह मशीनरी के लिए पॉलिसी हो ती है मशीनरी को फिजिकल डैमेज अथवा आग के कारण प्लांट बंद हो जाए तब रिकंस्ट्रक्ट होने में 6 महीने लग जाए उस समय दौरान यदि कोई सेल ना हो तब पिछले वर्ष की तुलना कर फैक्ट्री मालिक को बिजनेस इन्टरेप्शन क्लेम मिलता है।स्टॉक की कीमत मार्केट वैल्यू के अनुसार गिनी जाती हैं।तब बिल्डिंग और मशीनरी की कीमत अलग होती है।
अधिक जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि प्राकृतिक आपदा, लॉकडाउन, सप्लाई चैन का डिसपप्शन हो तो इस चीजें बिज़नेस इन्टरेपशन में नहीं आती। बड़ी कंपनियां जोकि अलग-अलग देशों में व्यापार करती हैं यह कंपनियां सप्लाई चैन डिसरप्शन हो तो इन मामलों में इंश्योरेंस पॉलिसी में स्पेशल डिजाइन कवर में लेती हैं। हालांकि, इंश्योरेंस के एसडीएफआई में स्टार्म, टायकून और साइक्लोन कवर किया जाता है।
रैना ने कहा कि दक्षिण गुजरात में बड़े पैमाने पर उद्योग हैं यहां के उद्यमियों को एंप्लाइज कंपनसेशन एक्ट के अंतर्गत कर्मचारियों के लिए मेडिकल पॉलिसी लेनी चाहिए। इस एक्ट के अंतर्गत फैक्ट्री में यदि कोई दुर्घटना होती है तो कर्मचारी यदि मर जाए अथवा अपंग हो जाए तो उसके परिवारजनों को आर्थिक मदद मिलती है।इसके अलावा प्रोडक्ट लायबिलिटी और कस्टमर लायबिलिटी के लिये भी पॉलिसी ले सकते है।