झारखंड के मुख्यमंत्री को एक भिेखारी के लिए क्यों करना पड़ा इंतजार…..

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डेस्क
झारखंड के मंत्री की यह मानवता किसी की भी दिल जीत लेगी। कोई वीआईपी किसी भिखारी के लिए पौना घंटा तक इंतजार करे यह तो शायद ही कभी बना होगा। हालांकि झारखंड में ऐसा ही हुआ। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और मंत्री मिथिलेश ठाकोर 45 मिनट तक इंतजार कर भीख मांगने वाले राजकुमार रविदास से मिले।

इस घटना के बारे में मिली जानकारी के अनुसार राजकुमार रविदास हजारीबाग जिले के एक गाँव का निवासी है। कुछ वर्ष पहले रांची आया था और मेहनत-मजदूरी कर उसने रिक्शा खरीदा था। वह अपनी रिक्शा की आवक से खुश था। उसमें से होने वाली आय से थोडा पैसा अपने लिए रखता और बाकी वतन भेज देता था। कुछ दिनो पहले रिक्शा चोरी हो जाने से उसके बुरे दिन शुरू हो गए। उसके पास आजीविका का साधन नहीं होने से वह भीख मांग कर खाने लगा। रविदास रांची में कॉलेज के पास बैठता है और भीख माँगता है।
लॉकडाउन में भीख भी नहीं मिलने से वह लाचार हो गया था।

स्थानीय मीडिया में रिपोर्ट के बाद, मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने एक रिक्शा खरीदने का फैसला किया और इसे मुख्यमंत्री के हाथों राजकुमार रविदास को सौंपने का फैसला किया। रविवार को मुख्यमंत्री कार्यालय ने राजकुमार रविदास को सूचित किया कि मुख्यमंत्री उन्हें रिक्शा देने आ रहे हैं। हालांकि, वह निर्धारित समय से 45 मिनट बाद पहुंचा। मुख्यमंत्री सोरेन तब तक उनका इंतजार कर रहे थे। रिक्शा मिलते ही रविदास के चेहरे पर खुशी देखने लायक थी।

कोरोना का भय : कब्र खोदने के लिए भी नहीं मिल रहे लोग
कोरोना के कारण यह दिन भी देखना पड़ेगा ऐसा कभी ने किसी ने नहीं सोचा होगा। देश में कोरोना की बढती संख्या और मृतांक ने लोगों की हिम्मत कम कर दी है। कोरोना के बढते भय और लॉकडाउन के श्रमिको के जाने की छूट के बाद कई शहरों में कोरोना की परिस्थिति में जरूरी काम कर सके ऐसे मजूरो की कमी हो गई है। जयपुर में तो  कब्र खोदने के लिए भी पुरुष उपलब्ध नहीं हैं। कब्रिस्तान तक पहुंचने वाले अंतिम संस्कार घंटों वहां पड़े रहते हैं। उन्हें कब्र खोदने तक इंतजार करना पड़ता है। कब्रों की खुदाई करने वाले कोई और प्रांतीय लोग नहीं हैं। ये सभी लोग पश्चिम बंगाल और बिहार के थे, जो अपने घर जा रहे थे। इसलिए जो लोग स्थानीय हैं वे कोरोना के डर से कब्रिस्तान में आने के लिए तैयार नहीं हैं। आखिरकार स्थिति यह पैदा हुई कि कब्र खोदने के लिए मृतक के परिवार के सदस्यों की बारी थी।