21.10.2024, सोमवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में होने वाले संग्राम में नीडरता के साथ युद्ध करने वाला योद्धा भी वीर कहला सकता है। कोई बहादुरी से कार्य करे, उसे भी कोई वीर कह दे। इस धर्मशास्त्र में वीर की परिभाषा धर्म से जुड़ी हुई बताई गई है कि जो वीर होता है, वह जागरूक रहता है। जहां सुसुप्तावस्था होती है, वहां खतरे की बात हो सकती है। जागरूकता का अर्थ कि कोई आदमी पूर्ण जागरूकता दिखाते हुए प्रमाद को छोड़ देता है, वह उसकी वीरता होती है।
जो अप्रमत्त है, वह वीर होता है। प्रमाद को छोड़ देना भी बहुत बहादुरी की बात होती है। न मद्य का नशा करता है, न विषय कषाय के सेवन में संलग्न होता है और न विकथा में जाता है, अनावश्यक नींद भी नहीं लेता है तो वह जागरूक व्यक्ति वीर होता है। जो दुर्बल होता है, वह प्रमाद में जाता है। जो सबल होता है, वह प्रमाद से मुक्त रहता है।
जिस काम का समय हो, उसके प्रति सजग रहना, जागरूक रहना ही वीरता होती है। पढ़ने समय पढ़ने के लिए तत्पर, खेलने के समय खेलना, प्रवचन सुनने के समय प्रवचन सुनना, ज्ञानार्जन के समय ज्ञानार्जन करने की जागरूकता हो। व्याख्यान के समय नींद लेने से बचने का प्रयास करना चाहिए। जो भी कार्य करें, समर्पित भाव के साथ करना चाहिए। तभी कार्य में सफलता प्राप्त हो सकती है। आदमी को अपने जीवन में जागरूक रहने का तथा वैर भाव से उपरत रहने का प्रयास करना चाहिए।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री बोधार्थी बाइयों से कुछ प्रश्न भी किए तो बाइयों से उसे अपने ढंग से बताने का प्रयास भी किया। आचार्यश्री ने बोधार्थी बाइयों को पावन आशीर्वाद प्रदान किया। मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्याजी ने भी जनता को उद्बोधित किया।
आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आज अमृतवाणी का मंचीय उपक्रम था। इस संदर्भ में अमृतवाणी के मंत्री श्री अशोक पारख ने अपनी अभिव्यक्ति दी। अमृतवाणी द्वारा आचार्यश्री तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की विडियो क्लिप प्रस्तुत की गई। अमृतवाणी के निवर्तमान अध्यक्ष श्री रूपचंद दूगड़, अमृतवाणी के नवनिर्वाचित अध्यक्ष श्री ललित दूगड़ ने अपनी अभिव्यक्ति देते हुए अपने आगामी टीम की घोषणा की। आचार्यश्री ने नवनिर्वाचित टीम को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। सारिका नाहटा ने अपनी पुस्तक ‘ज्ञानकुंज’ को लोकार्पित किया। खेड़ब्रह्मा से कर्मणा जैन काफी संख्या में पूज्य सन्निधि में उपस्थित थे। श्री बसंत भाई ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।