जो कुशल वह न तो बद्ध और न ही मुक्त : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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15.10.2024, मंगलवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :

आयारो आगम में कहा गया है कि इस संसार में जीने वाला प्राणी बंधनयुक्त होता भी होता है, किन्तु कुछ ऐसे भी मनुष्य होते हैं तो कुछ सीमा में बन्धन से मुक्त भी होते हैं। वे कुशल होते हैं, जो जीते हुए भी मुक्त रहते हैं। वे किसी रूप में बद्ध और मुक्त भी होते हैं। जो आदमी अतीत की स्मृतियों में नहीं खोता, भविष्य की कल्पनाओं में नहीं जाता, वर्तमान की स्थितियों में भी तटस्थ होता है, वह आदमी जीवित रहते हुए भी मुक्त होता है। अहंकार और कामवासना को जीतने वाला, मानसिक, वाचिक और कायिक विकारों से जो रहित है, आशा और लालसा से निवृत्त हो गए हैं, वैसे मनुष्य के लिए यहीं मोक्ष प्राप्त हो गया है, ऐसा माना गया है। 

अप्रमत्त साधु जो आसक्ति में नहीं जाता, पर प्रवृत्ति करता है। चलता है, बोलता है, खाता, पीता है, वह प्रवृत्ति से मुक्त नहीं है, किन्तु आसक्ति से आबद्ध नहीं है। कुशल शब्द आयारो में प्राप्त होता है। अध्यात्म के संदर्भ में प्रयोग किया जाता है। साधना में जो कुशल हो गया है, जो वीतरागी है, वह पदार्थों से बंधा हुआ नहीं होता और प्रवृत्ति से मुक्त नहीं होता। अध्यात्म जगत की साधना में कुशलता को प्राप्त करना लेना भी उच्च कोटि की बात होती है। 

मानव के जीवन में कुशल शब्द का प्रयोग होता है। कोई किसी कार्य को करने में कुशल होता है। को प्रबन्धन में कुशल होता है तो कोई लिपि कला में कुशल तो पाक कला में कुशल होता है। कार्य कौशल का विकास हो जाना जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। हमारे यहां कितने-कितने साधु-साध्वियां बहुत सुन्दर अक्षर में लिखते हैं। किसी-किसी की लेखनी उतनी अच्छी नहीं भी होती है। लिखने में अशुद्धियां हैं या नहीं, इसका भी ध्यान रखना होता है। शुद्ध लिखना लिपि कला का महत्त्वपूर्ण अंग है। लिपिकला में कुशल होना चाहिए। कोई भाषण देने में भी कुशल होता है। भाषा स्पष्ट हो, ज्ञान अच्छा है तो लोगों को सुनने में बहुत अच्छा लगता है। वक्ता में बोलने का भी कौशल होता है। इस प्रकार जो कुशल होता है, वह न तो बद्ध होता है और न ही मुक्त होता है। गाने में कुशलता होनी एक अलग बात होती है। कोई गीत लिखने में अच्छा होता है तो कोई बहुत बढ़िया गीत गा सकता है तो वह श्रोता के कानों के लिए तृप्तिदायक हो सकता है। उक्त पावन पाथेय मंगलवार महावीर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालु जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रदान किए। 

आचार्यश्री ने अन्य प्रसंग में कहा कि मुझे लाडनूं में गुरुदेव तुलसी ने रात में रामायण का वाचन करने का इंगित प्रदान किया था। मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्याजी ने जनता को उद्बोधित किया। मुनि उदितकुमारजी ने आयंबिल महाअनुष्ठान के विषय में जानकारी प्रदान की तथा दीपावली तेला अनुष्ठान के संदर्भ में भी जानकारी दी।

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