-आचार्यश्री ने जागरूक रहने को किया अभिप्रेरित
-सूरत को मिला तीसरे दीक्षा समारोह के आयोजन का सौभाग्य
-मुमुक्षु चन्द्रप्रकाश को 10 नवम्बर को आचार्यश्री ने की मुनि दीक्षा प्रदान करने की घोषणा
16.10.2024, बुधवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी बुधवार को ‘आयारो’ आगम के तीसरे अध्ययन के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि इसके प्रथम सूत्र में एक बात बताई गई है कि जो अमुनि होते हैं, वे सदा सोए हुए रहते हैं और मुनि सदा जागृत रहते हैं। ज्ञानी आदमी मुनि होता है। ज्ञान के साथ जिसमें संयम, अहिंसा, अपरिग्रह आदि की चेतना आ जाती है, सम्यक् दृष्टियुक्त जो चारित्रवान हो जाते हैं, वे मुनि होते हैं। ऐसे बाहर से सो भी रहा है तो भी जागरूक रहता है। वह कभी नींद का परित्याग कर धार्मिक जागरणा करने वाले भी हो सकते हैं।
शरीर से सोते हुए सम्यक् दृष्टि और सम्यक् चारित्र वाले मुनि आध्यात्मिक दृष्टि से जागरणा करते हैं। आचार्यश्री ने आचार्यश्री भिक्षु के जीवन के अनेक घटना प्रसंगों का वर्णन करते हुए कहा कि कभी किसी कार्यवश भी साधु को जागना हो सकता है तो कभी वह अपनी साधना आदि की दृष्टि से भी जागरणा कर लेता है। साधु का साधुपना नींद में भी होता है।
जो अज्ञानी लोग होते हैं, वह जागते हुए भी सोए हुए रहते हैं। प्रमाद के कारण आदमी जागते हुए भी सोते के समान होता है, जो सघन कर्मों का बंधन कर सकता है। इसलिए आयारो में बताया गया कि जो मुनि अर्थात् ज्ञानी लोग होते हैं, वे सोते हुए जागृत अवस्था में हो सकते हैं।
आचार्यश्री ने तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य श्रीमज्जयाचार्यजी के जन्मदिवस पर उनके जीवन के विभिन्न प्रसंगों का भी वर्णन किया। आचार्यश्री ने उनकी अभिवंदना, अभ्यर्थना की।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने मुमुक्षु चन्द्रप्रकाश से उसकी आंतरिक भावनाओं की पुष्टि करने के उपरान्त परिजनों की भावनाओं को जानने के उपरान्त आचार्यश्री ने घोषणा करते हुए कहा कि मुमुक्षु चन्द्रप्रकाश को कार्तिक शुक्ला नवमी दस नवम्बर 2024 को मुनि दीक्षा देने का भाव है। ऐसी घोषणा करते हुए पूरा प्रवचन पण्डाल जयघोष से गुंजायमान हो उठा। ज्ञातव्य है कि इससे पूर्व सूरत में आचार्यश्री दो दीक्षा समारोह कर चुके हैं। तीसरे दीक्षा समारोह का अवसर पाकर सूरत चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति अतिशय आह्लादित नजर आ रही थी।
चतुर्दशी तिथि के संदर्भ में आचार्यश्री ने हाजरी के क्रम को संपादित करते हुए अनेक प्रेरणाएं प्रदान कीं। तदुपरान्त उपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने-अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया।