सूरत
एक ओर सूरत के कपड़ा बाज़ार और कपड़े के कारख़ाने शुरू हो गए है, लेकिन श्रमिकों का पलायन जारी है। इसलिए कपड़ा मार्केट में काम करने वाले श्रमिक कहाँ से आएँगे। अब चिंता व्यापारियो को हो रही हैं। सूरत से अब तक 12 लाख से ज्यादा श्रमिक अपने गांव लौट चुके हैं।
रिंग रोड के कपड़ा बाजार में भी 700000 से अधिक लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष ढंग से रोजगार पाते हैं। कपड़ों की दुकान खुलने पर कटिंग पैकिंग करने वाले, बॉक्स बनाने वाले, पार्सल उठाने वाले, अकाउंट का काम करने वाले, बिलींग संबंधित काम करने वाले तथा ऑफिस ब्वाय आदि की ज़रूरत पडेगी, जो कि अभी बहुत कम है। दो महीने से लॉकडाउन के कारण व्यापार धंधा बंद होने से बेरोजगार श्रमिकों के पास फूटी कौड़ी नहीं बची थी। ऐसे में वह अपना जीवन यापन करने के लिए गांव जाने को मजबूर थे।
अब तक सूरत से अन्य राज्यों के लिए लगभग 400 ट्रेन जा चुकी है। जिसमें की सबसे ज्यादा ट्रेन यूपी की है। इसके बाद बिहार और उड़ीसा के श्रमिकों का नंबर आता है। कुल मिलाकर सूरत में काम करने वाले ज्यादातर श्रमिक उत्तर प्रदेश, बिहार,उड़ीसा आदि राज्यों के हैं जो कि अब तक 60 फ़ीसदी तक अपने गांव चले गए हैं। इन श्रमिकों के बिना उद्योगों को चल पाना एक कल्पना करने के बराबर है।
सरकार की ओर से लोग गांव में कुछ शर्तों के साथ कंटेंटमेंट जोन के बाहर व्यापार उद्योग खोलने की छूट दी गई है। 1 जून से कपड़ा बाजार भी खुलने का राह साफ़ है। यदि ऐसा ही कुछ रास्ता पहले भी हो जाता तो इतनी बड़ी संख्या में श्रमिकों को पलायन करने का नौबत नहीं आती। जो श्रमिक गांव जा रहे हैं।
कपड़ा उद्यमियों का कहना है कि उन्होंने श्रमिकों को रोकने का प्रयास तो किया लेकिन श्रमिक इस कदर व्याकुल थे कि उन्हें सिर्फ अपने गांव जाने की ही सूझ रहा थी। ऐसे में उद्यमियों ने की व्यवस्थाएं भी नाकाफी साबित हो रही थी।
सूरत के लूम्स , एंब्रॉयडरी प्रोसेसिंग यूनिट सहित कपड़ा उद्योग के तमाम घटकों में अन्य राज्यों के श्रमिकों का महत्वपूर्ण योगदान है। अब इनकी चमक तभी लौटेगी एक बार दोबारा फिर से सूरत की ओर रुख करेंगे।
फिलहाल सूरत में पच्चीस प्रतिशत श्रमिक ही बचे होंगे। इतने श्रमिकों से पर्याप्त उत्पादन कर पाना मुश्किल है। कोरोना का चाहे जो हो लेकिन ऐसे हालात मे यदि अन्य राज्यों में बाज़ार खुल भी जाए तो सूरत के उधमी उनके ऑर्डर पूरा करनें में दिक़्क़त महसूस करेंगे।
कपडा उद्यमियों का कहना है कि पिछले पन्द्रह दिनों में अन्य राज्यों के श्रमिकों के लिए ट्रेन निःशुल्क कर देने से बड़ी संख्या में श्रमिक चले गए। एक ओर सरकार ने शर्तों के साथ व्यापार खोलने की इजाज़त दी। दूसरी ओर श्रमिकों का पलायन हो जाने से व्यापारी परेशान हो जाएँगे।