पापकर्मों के बंध से बचने का प्रयास करे मानव : मानवता के मसीहा महाश्रमण

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जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, तीर्थंकर भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में नवरात्र के अवसर पर प्रारम्भ हुआ आध्यात्मिक अनुष्ठान शनिवार को महावीर समवसरण में सुसम्पन्न हुई। मंगल प्रवचन से पूर्व आचार्यश्री ने आध्यात्मिक अनुष्ठान का प्रयोग कराने के उपरान्त आचार्यश्री ने इस अनुष्ठान की सम्पन्नता की घोषणा की। 

तदुपरान्त समुपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि प्राणी को दुःख होता है। दुःख का कारण उसके कर्म होते हैं। आश्रव से कर्म का अर्जन होता है और जो मानव के अशुभ कर्म होते हैं, उससे आदमी को दुःख की प्राप्ति होती है। हालांकि शुभ कर्म का भी अर्जन होता है। जितना भी दुःख आश्रव के माध्यम से ही होता है। कर्मों की निर्जरा से मुक्ति अथवा सुख की प्राप्ति हो सकती है। दुःख का हेतु कर्म है, इसलिए आदमी को कर्म को अच्छी तरह समझकर पाप का बंध कराने वाले कर्मों से बचने का प्रयास करना चाहिए। कर्मों को समझकर पापकर्मों को छोड़ने का प्रयास करना चाहिए। 

जीवन में देखा जाए तो कोई बच्चा बहुत बुद्धिमान होता है। किसी को जल्दी समझ लेता है। कोई पाठ दे दिया जाए तो अतिशीघ्र याद भी कर लेता है और कोई बच्चा मंद बुद्धि होता है। पाठ याद नहीं होते, पढ़ाई में भी मन नहीं लगता है तो ऐसा इसलिए होता है कि ज्ञानावरणीय कर्म का बंधन होता है। ज्ञान की अशातना करना, किसी ज्ञानी की अशातना करना, ज्ञान प्राप्त करने में बाधा डालना, ज्ञान देने वाला का अविनय-अशातना करने से ज्ञानावरणीय कर्म का बंध होता है। आदमी को अपने जीवन में बुद्धि की अवमानना नहीं करने का प्रयास करना चाहिए। 

इसी प्रकार किसी को कोई कष्ट दे, लाठी से थप्पड़ से मार देना, किसी को मानसिक रूप से उत्पीड़ित करने से असातवेदनीय कर्म का बंध होता है तो आदमी के जीवन में कठिनाई, बीमारी के रूप में असातवेदनीय कर्म को भोगना पड़ता है। जो आदमी ऐसे कर्मों से बचता है, उसके जीवन में सातवेदनीय कर्म का प्रतिफल प्राप्त होता है। दूसरों के प्रति अनुकंपा, दया की भावना रखने से आदमी के जीवन में सुख की अनुभूति हो सकती है। किसी का लम्बा आयुष्य, किसी का छोटा आयुष्य आदि-आदि सभी कर्मों के फल के कारण होते हैं। 

इसलिए आदमी को कर्मों को जानकर अच्छे कर्म करने का प्रयास करना चाहिए, ताकि आदमी की अगली गति और वर्तमान जीवन भी अच्छा रहे। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्याजी ने जनता को उद्बोधित किया। 

आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम द्वारा आठवां राष्ट्रीय कॉर्पोरेट कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। इस संदर्भ में टीपीएफ के सदस्यों ने मंगलाचरण किया। टीपीएफ-सूरत के अध्यक्ष श्री कैलाश झाबक ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में पावन पाथेय प्रदान किया। इस कार्यक्रम का संचालन तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के महामंत्री श्री मनीष कोठारी ने किया। सुश्री प्रेक्षा मरोठी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। श्रीमती सज्जन पारख, श्रीमती सरिता सेखानी, श्रीमती हर्षलता दुधोड़िया, श्रीमती ज्योति व श्रीमती सुनीता सुराणा ने गीत का संगान किया। श्री कुमारपाल भाई देसाई द्वारा लिखित पुस्तक ‘कुमारपाल देसाई अभिवादन ग्रन्थ’ पुस्तक आचार्यश्री के समक्ष गुर्जर प्रकाशन की ओर से लोकार्पित की गई। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में अपनी भावाभिव्यक्ति दी।

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