डेस्क
कोरोना के कारण यह दिन भी देखना पड़ेगा ऐसा कभी ने किसी ने नहीं सोचा होगा। देश में कोरोना की बढती संख्या और मृतांक ने लोगों की हिम्मत कम कर दी है। कोरोना के बढते भय और लॉकडाउन के श्रमिको के जाने की छूट के बाद कई शहरों में कोरोना की परिस्थिति में जरूरी काम कर सके ऐसे मजूरो की कमी हो गई है।
जयपुर में तो कब्र खोदने के लिए भी मज़दूर उपलब्ध नहीं हैं। कब्रिस्तान तक पहुंचने वाले अंतिम संस्कार घंटों वहां पड़े रहते हैं। उन्हें कब्र खोदने तक इंतजार करना पड़ता है। कब्रों की खुदाई करने वाले कोई और प्रांतीय लोग नहीं हैं। ये सभी लोग पश्चिम बंगाल और बिहार के थे, जो अपने घर जा रहे थे। इसलिए जो लोग स्थानीय हैं वे कोरोना के डर से कब्रिस्तान में आने के लिए तैयार नहीं हैं। आखिरकार स्थिति यह पैदा हुई कि कब्र खोदने के लिए मृतक के परिवार के सदस्यों की बारी थी।
बताया जा रहा है कि डेढ महीने से लॉकडाउन के कारण मजदूरी का काम करने वाले श्रमिक लाचार हो गए है। कामधंधा बंद होने के कारण उनके पास पैसे भी नहीं है। कुछ दिनों तो उन्होने राज्य सरकार और सामाजिक संगठनो की ओर से मिल रही मदद पर काम चलाया लेकिन अब मुश्किल है। वह कहते है कि कब तक मांग कर चलाएंगे। लॉकडाउन-3 में श्रमिकों को कुछ छुट मिलने के कारण कई राज्यों के श्रमिक लौट गए है। इस कारण राजस्थान के भीलवाड़ा, जयपुर, दौसा सहित देश के कई हिस्सों में यह स्थिति पैदा हो गई है। कब्र खोदने वाले नहीं मिलते हैं इसलिए कुछ जगहों पर जेसीबी की मदद ली जाती है। कब्र खोदने के लिए कोई तैयार नहीं है।
विशेष कर जो लोग कोरोना से मर जाते हैं उनकी कबर खोदने के लिए कोई तैयार नहीं होता। उनकी कब्रों को परिवार के सदस्य खोदते है या जेसीबी मंगाई जाती है। यह स्थिति पिछले एक महीने से देखी जा रही है।