आज मनुष्य जीवन के हर क्षेत्र , यहां तक कि परिवार में भी निरंतर विपत्तियों का सामना करता रहता है ।कहीं व्यक्ति की माता-पिता से नहीं बनती तो कहीं पत्नी से नहीं बनती । और कहीं कहीं उस व्यक्ति के जीवन में अन्न एवं धन का भी अभाव रहता है ।इन सब से मुक्ति प्राप्त करने के लिए यह छोटा सा अनुष्ठान बताया जा रहा है।
आर्य जनों, श्रद्धा हर कार्य में प्रधान होती है । अतः जो हम बताने जा रहे हैं उसे तभी करें जब मन में आस्था हो। श्रावण में कृष्ण पक्ष की द्वितिया तिथि के दिन श्रवण नक्षत्र में प्रातः भगवान श्री हरि विष्णु का चिंतन करते हुए उठें । पापी पतित आदि से वार्तालाप न करें । केवल कंद मूल आदि सेवन करें ।
फिर दोपहर में स्नान करके धुले वस्त्र पहनकर पवित्र होकर भगवान की क्षीर सागर में शयन करती मूर्ति या चित्र के समक्ष जाकर इस मंत्र से उनका पूजन करें …
श्रीवत्सधारी श्रीकान्त
श्रीधाम श्रीपतेsव्यय ।
गार्हस्थं मा प्रणाशं मे यातु धमार्थकामदं ।।
पितरौ मा प्रणश्येतां मा
प्रणश्यन्तु चाग्रय: ।
तथा कलत्रसंबंधो देव मा मे प्रणश्यतु ॥
लक्ष्म्या त्वशून्यशयनं तथा ते देव सर्वदा ।
शय्या ममाप्यशून्यास्तु तथा जन्मनि जन्मनि ।।
अर्थात श्रीवत्स चिन्ह धारण करने वाले लक्ष्मीकांत!श्रीधाम !श्रीपते !अविनाशी परमेश्वर! धर्म अर्थ काम देने वाला मेरा गृहस्थ आश्रम नष्ट ना हो ।मेरे माता-पिता नष्ट ना हों। मेरे अग्निहोत्र गृह की अग्नि कभी ना बुझे ।मेरा स्त्री से संबंध विच्छेद ना हो ।हे देव जैसे आप का शयन गृह लक्ष्मी जी से कभी शून्य नहीं होता उसी प्रकार प्रत्येक जन्म में मेरी भी शैय्या धर्मपत्नी से शून्य न रहे ।
इस प्रकार कहकर अर्ध्य दें । अर्ध में तुलसी पत्र, हल्दी गंगाजल आदि से युक्त जल भगवान विष्णु के ऊपर या उनके सामने चढ़ाएं । अपने शक्ति के अनुरूप ब्राह्मण की पूजा करें ।
इसी प्रकार भाद्रपद आश्विन एवं कार्तिक मास में भी तिथि के अनुसार जल में शयन करने वाले भगवान विष्णु का व्रत करें हर व्रत के दिन नमक रहित अन्न का भोजन करें ।व्रत समाप्त होने पर श्रेष्ठ ब्राह्मण को जौ, गेहूं वस्त्र आदि का दान दें। जो मनुष्य एकाग्र चित्त होकर इस प्रकार भली-भांति व्रत का पालन करता है उसके ऊपर जगतगुरु भगवान विष्णु बहुत संतुष्ट होते हैं।
- नोट – दान आदि अपने सामर्थ्य के अनुसार ही करें।