साधना व तपस्या से पूर्व कर्मों को काटने का करें प्रयास : सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमण

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आचार्यश्री ने सघन साधना शिविर व राष्ट्रीय संस्कार निर्माण शिविर के संभागियों को दिया मंगल आशीष

04.11.2024, सोमवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :

डायमण्ड व सिल्क नगरी सूरत के भगवान महावीर युनिवर्सिटि में चतुर्मासरत जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी का चतुर्मास अब सम्पन्नता के निकट है, किन्तु श्रद्धालुओं की उपस्थिति और संघीय आयोजनों का क्रम मानों अभी भी प्रवर्धमान बना हुआ है। शांतिदूत की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में एक ओर सघन साधना शिविर का उपक्रम संचालित हो रहा है तो दूसरी ओर राष्ट्रीय संस्कार निर्माण शिविर का भी आयोजन हो रहा है। वहीं अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के अंतर्गत जैन तेरापंथ न्यूज का द्विदिवसीय सम्मेलन भी समायोजित हुआ। इन सभी आयोजनों के संभागियों को सोमवार को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के द्वारा शांतिदूत आचार्यश्री ने मंगल आशीर्वाद तथा पावन पाथेय प्रदान किया। अपने आराध्य से आशीष प्राप्त कर सभी संभागी मानों विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव कर रहे थे। 

शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगमाधारित अपने पावन प्रवचन में कहा कि आदमी साधना करे। कोई साधु बनकर साधना करता है तो कोई साधु नहीं बन सकते तो गृहस्थावस्था में यथासंभव साधना करते हैं। एक प्रश्न हो सकता है कि साधना और तपस्या क्यों की जाती है, इसका क्या प्रयोजन है? इस आयारो में इसके उत्तर में एक सूत्र दिया है कि अतीत में बहुत से पाप कर्म किए हैं, जिनसे कर्म का सघन बन्धन हुआ है। उनको तोड़ने के लिए, काटने के लिए अथवा क्षय करने के लिए तपस्या और साधना की जाती है। 

भगवान महावीर ने कितनी साधना की। उन्होंने अपने गृहस्थ जीवन में भी साधना की। लगभग साढे बारह वर्षों तक परिषहों को सहन किया। उन्होंने कितनी-कितनी अनाहार की साधना की और कितना ध्यान आदि के रूप में साधना की है। इससे यह प्रेरणा ली जा सकती है कि पहले किए हुए कर्मों को तपस्या और साधना के द्वारा क्षीण किया जा सकता है। जीवन कौन से जन्म में कर्म बांध लेता है, यह उसे भी नहीं पता होता है। 

मृत्यु तो एक दिन आनी ही है। चाहे राजा हो या रंक, चोर हो या ईमानदार मृत्यु तो परम आवश्यक है। इस मायने में मृत्यु इतनी निष्पक्ष और ईमानदार होती है कि कोई चाहे कितना भी धनी हो, गरीब हो, नेता, मंत्री, राजा, प्रजा कोई भी हो, सबको ले जाती है। कोई उसके समक्ष कितना भी बड़ा रिश्वत लेकर खड़ा हो जाए, तब भी वह उसे लेकर ही जाती है। तीर्थंकर भगवान हों अथवा चक्रवर्ती हों, उन्हें भी मृत्यु लेकर ही जाती है। 

आदमी को यह विचार करना चाहिए कि मैं यहां स्थायी नहीं हूं, राही हूं। इसलिए अपने जीवन में साधना और तपस्या की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए और पूर्वकृत कर्मों को काटने का प्रयास करना चाहिए। तीर्थंकर तो जनता को बोध देने वाले, उपदेश देने वाले होते हैं। उनकी प्रेरणा से आदमी को पूर्वकृत कर्मों का क्षय करने के लिए तपस्या, साधना के दिशा में आगे बढ़ने और संयम करने का प्रयास करना चाहिए। समता रखना भी एक प्रकार की साधना है। 

संस्कार निर्माण शिविर और सघन साधना शिविर की जो बात है। उसमें भी बच्चों में और में अच्छे संस्कार आ जाएं। संस्कार निर्माण शिविर में जो बालक-बालिकाएं आते हैं, उनको थोड़े समय में प्रशिक्षण मिल जाए तो कितना अच्छा है। सघन साधना शिविर तो गहरी साधना का शिविर है। उसकी साधना करना तो और भी सघन है। यह साधना का मौका है। ऐसी शिविरों का मौका मिलना भी अच्छी बात होती है। ये शिविर जीवन को कुछ खुराक देने वाले, अध्यात्म का मार्ग दिखाने वाले और जीवन में अच्छी प्रेरणा देने वाले बन जाते हैं तो जीवन पर उनका प्रभाव भी पड़ सकता है और शिविरार्थियों का जीवन सफल हो सकता है। स्कूल, कॉलेज आदि में तो रविवार अथवा त्योहार आदि की छुट्टी भी प्राप्त होती है, किन्तु यहां तो कोई छुट्टी की बात नहीं होती। सघन साधना शिविर का पूरा लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए। बहुत किए पाप कर्मों को काटने के लिए साधना व तपस्या के द्वारा कर्मों को काटने का प्रयास किया जा सकता है। 

जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित लेखक समणी डॉ. हिमप्रज्ञाजी की पुस्तक ‘आचार्य तुलसी का समाज दर्शन’, शासन गौरव साध्वी कल्पलताजी की पुस्तक ‘तेरापंथ का यशस्वी साध्वी समाज भाग- 6’ तथा ‘संयम की राही, साध्वी योगक्षेमप्रभाजी की पुस्तक ‘वाव का पहला पुष्प शासनश्री साध्वी भाग्यवतीजी’ को लोकार्पित किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। 

आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के अंतर्गत दो दिवसीय जैन तेरापंथ न्यूज के सप्तम राष्ट्रीय प्रतिनिधि सम्मेलन का मंचीय उपक्रम भी रहा। इस संदर्भ में जेटीएन के प्रधान संपादक तथा अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रमेश डागा तथा श्री पवन फूलफगर ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में आशीष प्रदान करते हुए कहा कि अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के तत्त्वावधान में जैन तेरापंथ न्यूज कार्य करने वाला एक उपक्रम है। आज सोश्यल मीडिया का बहुत उपयोग किया जाता होगा। कितना जल्दी संवाद संप्रेषण किया जाना, वैज्ञानिक युग की देन है। खबर में प्रमाणिक हो और खबर को प्रसारित करने में विवेक हो। प्रमाणिकता तो मिडिया के बहुत आवश्यक है। जेटीएन से जुड़े कार्यकर्ताओं में नशामुक्तता रहे, धर्म की साधना करते रहें। आज तक के संवाददाता श्री संजयसिंह राठौड़, एबीपी न्यूज के संवाददाता श्री धनराज वागले तथा गुजरात गार्डियन के श्री मनोज मिस्त्री ने आचार्यश्री के दर्शन कर अशीर्वाद प्राप्त किया। कार्यक्रम का संचालन अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के महामंत्री श्री अमित नाहटा ने किया।

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