सूरत
कोरोना के कारण सूरत की मद्रेसा इस्लामिया वकफ में अभ्यास करने वाले 670 विधार्थी रूक गए थे। इनकी गुहार पर सूरत कलक्टर धवल पटेल ने उनकी मदद की। कलक्टर ने उनके लिए तत्काल स्पेशल ट्रेन की व्यवस्था कर दी। इसके माध्यम से उन्हें नौ मई को रात के डेढ बजे बिहार उनके वतन भेजा गया।
इनके साथ अन्य श्रमिक मिलाकर कुल 1195 लोग ट्रेन में गए। यह ट्रेन 24 घंटे का नॉन स्टॉप सफर कर बिहार पहुंचेगी। बताया जा रहा है कि शहर की मद्रेसा इस्लामिया वकफ में शहर की अलग-अलग शाखाओं में बिहार के गरीब परिवारों के 14 से 22 वर्ष के बच्चे अभ्यास कर रहे है।
23 और 24 मार्च की तारीख को ट्रेन बुक कराई गइ थी, लेकिन लॉकडाउन के कारण वह फंस गए थे। बिहार में उनके माता-पिता को चिंता होने से वह बारबार फोन कर रहे थे। लॉक़डाउन के कारण वाहन व्यवहार बंद होने से संचालक भी चिंतित हो गए थे। ऐसे में बिहार के लिए वतन जाने की मंजूरी मिलने के बाद संचालकों ने कलक्टर से मुलाकात कर अपनी चिंता व्यक्त की।
कलक्टर ने इस पर तुरंत ही व्यवस्था कर दी। इसके बाद बच्चों को सोशल डिस्टैंस के पालन के साथ, मास्क की व्यवस्था के साथ और जरूरी चैक-अप के बाद बिहार के पूर्णिया की ट्रेन में बिठा दिया गया।
तो इस तरह बढ़ा सूरत में कोरोना से जीतने वालो का दर
जहां कुछ गुजरात सहित देश के कई शहरों में कोरोना के आंकड़े तेजी से बढ़े हैं, वहीं सूरत में कोरोना से रिकवरी 52.9फीसदी तक पहुंच गई है। नगर निगम आयुक्त ने कहा कि नगर निगम द्वारा शुरू की गई डोर-टू-डोर सर्वे और तमाम सावधानियों के कारण रिकवरी रेट बढ़ा है।
इस बारे में जानकारी देते हुए सूरत के नगर निगम आयुक्त बंछानिधि पाणि ने कहा कि शनिवार शाम तक सूरत में 841 कोरोना के मरीज दर्ज हुए थे, इनमे से 37 मरीजों की मौत हो चुकी है। सूरत में, कोरोना के कारण मृत्यु दर 4.4 प्रतिशत है जबकि कुल 445 ठीक हो चुके है। सूरत में, कोरोना से ठीक होने वालों का रिकवरी रेट 52.9 प्रतिशत है। जो कि कल तक 49.5 प्रतिशत थी।
कमिश्नर ने कहा कि पालिका की टीम डोर टु डोर सर्वे के माध्यम से एआरआई के मरीजों के लगातार नजर बनाए हुए है। आज तक, कुल 25,000 मामलों का विश्लेषण किया गया है। ऐसे मामलों में लगातार फॉलो-अप किया जाता है। ऐसे मामलों में जो संदिग्ध दिखाई देते हैं, आरबीएक्सए डॉक्टर मरीज के घर-घर जाकर उसके लक्षणों के आधार पर परीक्षण शुरू करते हैं। नतीजतन, उनका इलाज जल्द से जल्द शुरू हो जाता है जैसे ही मामले मिलते हैं। जिससे रोगी के ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है।