सूरत के सिविल अस्पताल में शनिवार की रात ढाई बजे के करीब पोस्टमार्टम रूम में एक वृद्धा का मृतदेह रखा जा रहा था। इस दौरान वृद्धा के पांव में हलचल होने लगी। इस भ्रम के कारण सर्वन्ट दौडकर मेडिकल ऑफिसर के पास गया। मेडिकल ऑफिसर भी यह सुनकर पोस्टमार्टम रूम पहुंचे और फिर से जांच की लेकिन वृद्धा जीवित नहीं थी। यह सिर्फ सर्वेन्ट की आशंका थी।
मिली जानकारी के अनुसार शनिवार की रात 2:30 बजे के करीब को 108 एम्ब्युलेनस से एक 80 साल की वृद्धा को लाया गया था। जिसे कि डॉक्टर ने मृत घोषित कर दिया था इसके बाद स्ट्रेचर पर से वृद्धा की लाश दूसरे स्ट्रेचर पर ट्रांसफर करते समय पांव हिल रहे होने यह जानकारी एक सर्वेंट ने मेडिकल ऑफिसर डॉ. वैधरभी को दी थी।
इसके बाद डॉक्टर दौडते हुए वहां पहुंचे थे। लेकिन वृद्धा की धडकन, पांव की मुवमेन्ट तथा अन्य आवश्यक जांच पड़ताल करने पर वृद्धा मृत निकली। इसके बाद पुलिस ने वृद्धा का मृतदेह परिवार को अंतिमविधी के लिए दे दिया। हालाकि इस दौरान सिविल अस्पताल मं मृतक जीवित होने की चर्चा तेजी से फैल गई थी और लोगों में यह कौतूहल का विषय बन गया था।
हालाकि जैसे ही डॉक्टर ने जांच कर उन्हें पुन: मृत घोषित किया सबकुछ सामान्य हो गया। एक सर्वन्ट की आशंका के कारण सिविल में डॉक्टर्स भी घबरा उठे थे।
कोरोना मरीजों को ठीक करने के लिए सिविल अस्पताल में अब प्लाजमा थेरेपी देने की शुरुआत की जा रही है। सिविल हॉस्पिटल में 9 डॉनर्स में से एक का प्लाज्मा चढ़ाया जा रहा है। जिस मरीज को प्लाज्मा चढ़ाया जाएगा उसे 2 दिन तक प्लाजमा का डोज दिया जाएगा और बाद में मरीज की स्थिति कैसी है यह पता किया जाएगा।
देश में कोरोना के मरीजों के लिए प्लाजमा थेरेपी असरकारक है। ऐसा माना जा रहा है। इसके पहले सिविल हॉस्पिटल में प्रायोगिक तौर पर एक गंभीर मरीज के ऊपर प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया गया था लेकिन, वह सफल नहीं था। गंभीर हालत में कोरोना मरीज के ऊपर इस थेरेपी का उपयोग किया गया लेकिन उसे नहीं बचा सके।
कोरोना रोग शुरू हुआ तब से दुनिया भर में अभी तक इसकी कोई दवा नहीं बन सकी है। प्लाजमा थेरेपी ने लोगों को नई राह दिखाई है। हॉस्पिटल के ब्लड बैंक में मरीजों से प्लाज़्मा डोनेशन 3 मई से शुरू किया गया है। इस बारे में ब्लड बैंक के इंचार्ज डॉक्टर मयूर जनक ने मीडिया को बताया कि आधुनिक मशीनों के माध्यम से कोरोना से ठीक हुए मरीजों से प्लाज्मा लिया जाता है।
डॉनर्स के पास से प्लाज्मा लेते समय आईसीएमआर और एनबीटीसी की गाइडलाइन का पालन किया जाता है। प्लाज्मा लेते समय डोनर के एंटीबॉडी स्क्रीनिंग टेस्ट भी की जाती है। कोरोना मरीजों में से एंटीबॉडी डेवलप होती है। तभी प्लाजमा लिया जाता है। अब तक कुल 9 लोगों का प्लाज्मा लिया जा चुका है। इसमें से एक दोबारा दिया है। शहर में प्लाज्मा डोनेशन के बाद प्लाज्मा देने की भी शुरुआत की गई है।
सोमवार को उमेश जोशी नाम के एक व्यक्ति ने को प्लाजमा थेरेपी शुरुआती गई। उसे मंगलवार को दूसरा डोज दिया गया। आगामी दिनों में उमेश की तबीयत कैसी रहती है। यह देखा जाएगा। डॉक्टर ने बताया कि वह अधिक से अधिक डॉनर्स को ढूंढ रहे हैं। आपको बता दें कि प्लाजमा डोनेशन भी डोनेशन जैसे ही प्रक्रिया है। यह डिस्पोजेबल स्टाइरल ऑटोमेटिक ढंग से लिया जाता है।
रक्तकणों को मशीन में प्रवाही से अलग किया जाता है। और मरीज के शरीर में फिर से डाल दिया जाता है। एक बार में 500 मिली प्लाज्मा ले सकते हैं। यह बहुत ही सरल और सलामत प्रक्रिया है डोनर 15 दिन के बाद फिर से प्लाज्मा दे सकता है। जिनकी उम्र 18 साल हो और वजन 55 किलो अधिक हो डोनेट कर सकते हैं।
कोरोना के मरीजों के उपचार के दौरान कई बार नए नए कारणो से चर्चा मे में रहने वाली सूरत की सिविल अस्पताल में एक बार फिर से नया विवाद शुरू हुआ है। इस बार कोरोना से मृतक के परिवारजनों ने आरोप लगाया है कि उनके स्वजन की मौत के बाद अंतिम संस्कार भी कर दिया गया लेकिन घरवालों की इसकी जानकारी नहीं दी गई।
कतारगाम क्षेत्र में रहने वाले दिलीप मगन गोंडलिया हीरा श्रमिक के तौर पर काम करते थे। गत 17 तारीख को उन्हे कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट आने के बाद सिविल होस्पिटल में दाखिल किया गया था। उनके भतीजे किशन गोंडलिया ने अधिक जानकारी देते हुए मीडिया को बताया कि गत 24 ता्रीख को रात के 11 बजे के करीब दिलीप भाई ने अपने परिवार जनो से बात की।
इसके बाद 25 तारीख की दोपहर को जब हम दिलीप भाई से मिलने गए तब पता चला कि उनकी सबेरे पांच बजे के करीब मौत हो गई। उनका अंतिम संस्कार एकता ट्रस्ट की ओर से कर दिया गया है।
किशन गोंडलिया ने मीडिया को बताया कि 24 तारीख के बाद से मोबाइल स्वीच ऑफ होने के कारण हम चिंतित थे। जब हम वहां गए तब हमें जानकारी दी गई। सिविल प्रशासन ने हमें मौत की जानकारी तक नहीं दी। दिलीप भाई के दो बेटे हैं। दिलीप भाई के दो पुत्रो ने सिविल होस्पिटल की इस लापरवाही के प्रति अपना दुख और नाराजगी व्यक्त की।
उल्लेखनी है कि सिविल अस्पताल में कोरोना के मरीजो को लेकर कोई न कोई नया विवाद आ रहा है। गत रोज उधना के एक कोरोना मरीज के मामलें में सिविल अस्पताल प्रशासन की ओर से उसका रिपोर्ट नेगेटिव होने का कहकर घर भेज दिया गया। जबकि पालिका की ओर से कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट आने के बाद भी सिविल के रिपोर्ट को लेकर विवाद खडा हुआ है।