15 जून से देशभर में 14, 18 और 22 कैरेट के आभूषणों पर बीआईएस हॉलमार्किंग अनिवार्य कर दी गई है। इससे ज्वैलर्स की चिंता बढ़ गई है। नियम अच्छा है लेकिन ज्वैलर्स का कहना है कि इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव में इसका पालन करना मुश्किल है। ज्वैलर्स को डर है कि लागत बढ़ने से बिक्री घटेगी। विशेष रूप से महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के राज्यों में 19 और 21 कैरेट के आभूषण कैसे बेचे जाएं, इस पर चिंता जताई गई है।
सूरत ज्वैलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सलीम दागीनावाला के मुताबिक हॉलमार्क के मुद्दे पर ज्वैलरी काउंसिल की ओर से कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिस पर अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया है, जहां हॉलमार्किंग का अमल शुरू हो गया है।
हॉलमार्किंग का नियम जौहरी और ग्राहक दोनों के लिए अच्छा है, लेकिन बुनियादी ढांचे की कमी के कारण इसका सटीक कार्यान्वयन संभव नहीं है। शहर धीरे-धीरे ज्वेलरी हब बनता जा रहा है। देश के कई राज्यों में यहां ज्वैलरी बनती है, ज्वैलर्स परेशान हैं क्योंकि हॉलमार्क कैसे किया जाए सहित कई मुद्दे अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाए हैं।
गौरतलब है कि ज्वैलरी काउंसिल के मुताबिक देश में उत्पादित 25,000 टन ज्वैलरी पर हॉलमार्क नहीं होता है। साथ ही, जो आभूषण तैयार किए गए हैं, उनका वजन हॉलमार्किंग मानकों के अनुसार 14, 18 और 22 कैरेट का नहीं है। ज्वैलर्स को इसे फिर से लागू करने की लागत बढ़ सकती है। पालन नहीं करने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के प्रावधान है।