08.12.2024, रविवार, लुवारा, भरूच (गुजरात)*
वर्तमान युग में भी प्राचीन भारतीय ऋषि परम्परा के जीवन्त उदाहरण, परोपकार के लिए समर्पित संत शिरोमणि युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी जन चेतना में अहिंसा का संदेश देते हुए अविरल गतिमान है। भरूच में एक दिवसीय प्रवास संपन्न कर आचार्य प्रवर ने प्रातः विहार किया। पूर्व में सन् 2023 में सूरत आगमन के दौरान यही मार्ग विहार पथ का था वहीं अब सूरत से प्रस्थान करने के पश्चात पुनः द्वितीय बार इन क्षेत्रों में गुरुदेव का पदार्पण हो रहा है। आराध्य का प्रवास प्राप्त कर भरूच वासी आराध्य के प्रति कृतज्ञ भावों से श्रद्धा समर्पित कर रहे थे।
मार्ग में कई जगह श्रद्धालुओं के आवास के शंख मंगलपाठ प्रदान कर गुरुदेव गंतव्य हेतु गतिमान हुए। प्रभात वेला में जहां हल्की ठंड दस्तक दे रही है वहीं सूर्य की तेजस्विता भी घड़ी की सुइयों के साथ तेजस्विता का रूप ले रही है। हर परिस्थिति में अप्रतिबद्ध विहारी आचार्य प्रवर लगभग 10 किमी विहार कर लुवारा के एमिकस इंटरनेशनल स्कूल में प्रवास हेतु पधारे। आज सूरत सहित आसपास के क्षेत्रों से भी बड़ी संख्या में श्रावक समाज गुरु चरणों में उपासना हेतु उपस्थित था।मंगल प्रवचन में गुरूदेव ने कहा – मनुष्य के पास मन है, यह एक प्रकार की उपलब्धि है। संसार में अनेकानेक प्रकार के प्राणी है, कुछ मन वाले संज्ञी तो कुछ असंज्ञी भी होते है। जिसमें मनुष्य मन वाला प्राणी है।
मन से समृति, कल्पना व चिंतन का कार्य किया जाता है। मन की चंचलता भी होती है।ध्यान मन की एकाग्रता का एक माध्यम है। प्रवृति है तो ध्यान निवृति की साधना है। ध्यान साधना की अनेक पद्धतियाँ हैं। आचार्य तुलसी ने आज से पच्चास साल पूर्व जिस ध्यान पद्धति को जन्म दिया वह है प्रेक्षा ध्यान। जिसका अभी 50 वर्षों के संदर्भ में प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष भी चल रहा है। मन में विचारों का प्रवाह चलता रहता है व कई बार अनपेक्षित विचार भी आते रहते हैं। कार्य कुछ और कर रहे है और मन कही ओर चलने लग जाता है।
गुरुदेव ने आगे कहा कि आगम में चार प्रकार के ध्यान बताए गए हैं, जैसे आर्त ध्यान, रौद्र ध्यान, धर्म ध्यान व शुक्ल ध्यान। इनमें शुरू के दो तो अशुभ ध्यान है तथा बाद के दो शुभ ध्यान की श्रेणी में आते है। शरीर में जैसे शिर का महत्व है, वृक्ष में जैसे मूल का महत्व है उसी प्रकार साधना में ध्यान का महत्व होता है। व्यक्ति भावक्रिया का अभ्यास करे। अर्थात जो भी कार्य कर रहे है उसमें दत्त चित हो जाना। इस प्रकार चलते फिरते, हर कार्य के साथ ध्यान जुड़ सकता है। ध्यान के साथ साथ अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रम्हचर्य, अपरिग्रह जैसे गुण भी साधना के लिए जरूरी है।
ध्यान के साथ साथ इन गुणों का विकास भी पहले आवश्यक है। व्यक्ति अपने हर कार्य में धर्म को जोड़े। ऑफिस में है तो वहां भी धर्म हो। ईमानदारी, किसी के साथ बेईमानी नहीं करनी चाहिए। हर कार्य में जब धर्म जुड़ जाता है तो चलते फिरते भी धर्म एक प्रकार से जीवन में आ गया समझना चाहिए। ट्रेन में है, कही जा रहे है और समय है तो स्वाध्याय, ध्यान आदि में समय का नियोजन किया जा सकता है। इस अवसर पर एमिकस इंटरनेशनल स्कूल की कॉर्डिनेटर श्रीमती जया चौरसिया ने स्वागत वक्तव्य दिया।