सन 1885 से सूरत में निकल रहा ताजिया का जुलुस इस साल नही निकलेगा

कोरोना के कारण जहां लोगों के रहने सहने का ढंग बदल गया है वहीं धार्मिक और सामाजिक ढांचे में भी परिवर्तन आ गया है। कोरोनावायरस इस साल सूरत में गणपति बप्पा की कलात्मक और बड़ी मूर्तियां नहीं बन सकी। लोगों ने 2 फीट की बप्पा की मूर्तियां बनाकर ही पूजा अर्चना की। वहीं इस बार ताजिए भी नहीं देखने को मिलेंगे।

सूरत में सन 1885 से ताजिया निकलते रहे हैं लेकिन कोरोनावायरस इस बार लोगों ने ताजिया नहीं बनाए। कोरोनावायरस के देखते हुए प्रशासन की ओर से जारी की गई गाइडलाइन के अनुसार इस साल ताजिया जुलूस और गणपति विसर्जन पर प्रतिबंध रखा गया है। सिर्फ 2 फीट की ही गणेश प्रतिमा और ताजिया बनाए गए हैं।

सूरत में ताजिया का इतिहास बहुत लंबा है। सन 1885 में मुगल काल और अंग्रेजों के समय के दौरान से ताजिया निकल रहा है लेकिन, इस साल लोगों ने परिस्थिति को देखते हुए सिर्फ 2 फीट की प्रतीकात्मक ताजिए बनाए हैं। जोकि दसवें चांद के रोज घर में ही ठंडे5 कर दिए जाएंगे। आपको बता दें कि सूरत में पहली बार 1885 में सलाबतपुर के मोमनावाड में ताजिया बनाए गए थे।

तब से ताजिया निकल रहे हैं। हालांकि एक दो बार सूरत में बाढ़ की परिस्थिति में ताजिया नहीं निकले थे। इसके अलावा गोधरा कांड के दिनों में भी ताजिया नहीं निकल सके थे। शनिवार को चौक बाजार के मेमन हॉल में पुलिस के ज्वाइंट कमिश्नर मुलियाना और देसाई के साथ ताजिया कमेटी के पदाधिकारियों की मीटिंग हुई। मीटिंग में पुलिस अधिकारियों ने कोरोना की गाइडलाइन बताते हुए ताजिया जुलूस कत्ल की रात और दूसरे दिन नहीं निकलेगें यह समझाया। जिसके चलते शहर में ताजिया नहीं दिख सकेंगे।