18 साल के इंजीनियर छात्र को हर 15 मीनिट पर लघुशंका की समस्या से दिलाई मुक्ति

आप ही सोचिए कि यदि रात को किसी को 10-15 बार लघुशंका के लिए जाना पड़े और दिनभर में हर बीस मिनट में लघुशंका निवारण के लिए जाना पड़े तो उसकी हालत क्या होगी? फ़िलहाल सूरत के डॉक्टरों ने अहमदाबाद के इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ रहे एक विद्यार्थी को इस समस्या से मुक्ति दिलवाई है। इसे मेडिकल साइंस में चमत्कार माना जा रहा है।

गुजरात में इस तरह की पहली सर्जरी होने का दावा डॉक्टर कर रहे हैं। इंजिनियरिंग में अभ्यास करने वाले अहमदाबाद के 18 वर्षीय विद्यार्थी को बचपन से ही स्पाइना बिफिडा नाम की बीमारी से पीड़ित था। इस बीमारी के कारण विद्यार्थी की जिंदगी कठिनाइयों से भर गई थी। उसे हर 10 मिनट पर पेशाब आ जाती थी।वह कहीं पर नहीं जा सकता था। रात के समय भी उसे बार-बार पेशाब के लिए जाना पड़ता था। हमेशा बाथरूम का दरवाजा खुला रखना पड़ता था। परिवार के साथ वह कहीं पर जा भी नहीं सकता था। यह समस्या उसके परिवार जनों के लिए भी बहुत चिंताजनक थी। वेसू क्षेत्र की एक हॉस्पिटल में इस समस्या से पीड़ित विद्यार्थी की सफल सर्जरी की गई।


इस बीमारी में न्यूरल पेशियों को रीढ की हड्डी के कैनाल में कर दिया जाता है और स्नायु तथा त्वचा को सील दिया जाता है। इस बीमारी में 65 प्रतिशत लोगों को पेशाब लीक हो जाने की न्यूरोजेनिक ब्लैडर की समस्या होती है। इन्हें दिमाग रीढ की हड्डी और नसों की समस्या के कारण पेशाब पर नियंत्रण नहीं रहता है। इस समस्या में मूत्राशय पेशाब खाली करने करने के लिए तैयार नहीं रहता तब तक रोके रखने के लिए स्नायु और मसल को श्रम करना पड़ता है।

न्यूरोजेनिक ब्लैडर में से मुत्रमार्ग से नसों को संदेशा मिलता है। रीढ की हड्डी और दिमाग जिस तरह काम करने चाहिए उस तरह नहीं करते हैं। कई मामलों में तो शौचालय तक पहुंचने से पहले ही पेशाब लीक हो जाता है।इस बारे में बताते हुए डॉक्टर सुबोध कांबुले ने कहा कि पीड़ित विद्यार्थी जन्म से स्पाइना बिफिडा नाम की बीमारी से पीड़ित था। इस बीमारी में बच्चे को जन्म के पहले स्पाइनल केनाल और रीढ की हड्डी नजदीक में नहीं होती। इस तरह की जन्मजात खामी को न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट भी कहा जाता है।

1000 बच्चों में से दो तीन बच्चों में यह खामी रहती है। जोकि प्रतीक के साथ भी हुई थी। प्रतिक की सर्जरी 3 साल और 8 वर्ष पर करवाई गई थी। इस बीमारी के कारण संक्रमण दूसरे तरह अंग में भी लग सकता है। इसलिए रीढ की हड्डी की सर्जरी करानी पड़ती है। जिसमें कि न्यूरल पेशियों को रीढ की हड्डी की केनाल में कर दिया जाता है। सर्जरी सफल रहने के बाद पीड़ित के चेहरे पर बेहद ख़ुशी थी। उसके पिता भी अपने बेटे की इस समस्या से मुक्ति को लेकर बेहद ख़ुश थे।