सूरत
कपड़ा उद्योग के लिए कोरोना ने बड़ी समस्या खड़ी कर दी है। इस पर भी अन्य राज्यों के श्रमिकों का पलायन कपडा उधोग के लिए दोहरी चोट साबित हो सकता है। क्योंकि अब की वतन गए श्रमिक दिवाली के पहले नहीं लौटेंगे। कुछ श्रमिकों तो शायद लौटे ही नही !यदि कोरोना दिवाली तक ठीक भी हो जाए तो भी श्रमिकों की कमी के कारण व्यापार शून्य ही रहेगा।
सूरत के कपड़ा उधोग में है लाखों अन्य राज्यों के श्रमिक
सूरत के कपड़ा बाज़ार में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर १५ लाख लोगों को रोजगारी मिलती है। इसमें कपड़ा बाज़ार, लूम्स कारख़ाने, एम्ब्रॉयडरी, डाइंग प्रोसेसिंग मिल सभी शामिल है। इनमें ज़्यादातर श्रमिक यूपी, बिहार ओड़िशा आदि राज्यों से हैं। लॉकडाउन के कारण जीवन व्यापन मुश्किल होने से श्रमिकों में वतन की राह पकड़ी है। एक बार जैसे ही यातायात शुरू हुआ बचे हुए श्रमिक भी वतन चले जाएँगे।
वेतन के लिए हुए परेशान हुए कपड़ा श्रमिक
कपड़ा उद्योग में काम करने वाले कई श्रमिकों की शिकायत है कि उन्हें लोग गांव के दौरान एक बार मार्च महीने में वेतन तो मिला लेकिन दोबारा जब लोग डाउन बढ़ाया गया तब उसके बाद का वेतन नहीं मिला कई मालिकों ने आधा तिहा पैसा चुका कर पीछा छुड़ा लिया इस कारण वह दुखी हैं बड़े मालिक तो जैसे तैसे चला लेंगे लेकिन छोटा श्रमिक जिसके माथे सूरत में परिवार का खर्च और गांव में माता पिता और भाई बहन का खर्च है वह बिना वेतन के कितने दिन सूरत में टिक सकता है इस कारण कई श्रमिकों ने मन सूरत से खट्टा हो चुका है अबकी वह यहां से जाने के बाद शायद ही सूरत लौटेंगे
सब की अपनी मुसीबत
केंद्र सरकार ने सभी संस्थानों के मालिकों से श्रमिकों को पूरा वेतन चुकाने की अपील की थी लेकिन स्थानों की भी अपनी मर्यादा है उनका कहना है कि उत्पादन बंद है व्यापार बंद है ऐसे में वह एक साथ कितने खर्च वह कर सकते हैं सरकार ने नाही बैंक ब्याज माफ किया है नाही लोन की किस्त छोड़ने का कोई वादा किया है बिजली खर्च भी चल रहा है अन्य खर्च भी चल रहे हैं हम कहां से इतने रुपए ले आएं कुल मिलाकर बात यह है कि दोनों रिकी लाचारी के कारण कपड़ा उद्योग को नुकसान का सामना करना पड़ेगा
कपड़ा श्रमिकों के साथ होने का दावा
फेडरेशन ऑफ सूरत टैक्सटाइल ट्रेडर एसोसिएशन के महामंत्री चंपालाल बोथरा ने बताया कि कपड़ा मार्केट में काम करने वाले श्रमिकों को हमने पूरा वेतन दिलवाया है ।किसी भी श्रमिक ने कभी भी शिकायत की तो हमने दुकान के संचालक से बात कर लॉकडाउन डाउन के दौरान दुकानें खुलवा कर भी श्रमिकों का वेतन दिलवाया है ।इसके बावजूद एक बार मार्केट खुल जाए फिर हम दुकान संचालकों के साथ बैठकर श्रमिकों की वेतन की अन्य समस्या भी सुलझा लेंगे ।कपड़ा व्यापारी हमेशा से श्रमिकों के साथ खड़े हैं ।अभी भी कपड़ा व्यापारियों की ओर से श्रमिकों की मदद के लिए राशन किट की और भोजन की व्यवस्था की जा रही है ।बीते दिनों इस सिलसिले में हमने सरकार से यह भी गुहार लगाई थी कि श्रमिकों के वेतन का 50% हिस्सा सरकार वाहन करें 25% श्रमिकों के मालिक वाहन करें इस तरह से भी श्रमिकों के लिए व्यवस्था हो सकती है लेकिन ,सूरत में ज्यादातर पेढीयां संगठित होने के कारण श्रमिकों को यह लाभ भी नहीं मिल सकता ।इस सिलसिले में सरकार को सूरत में कपड़ा उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों का सर्वे करवाना चाहिए ताकि सही परिस्थिति का ख्याल आता आ सके।
नहीं रूकना चाहते श्रमिक
साउथ गुजरात टैक्सटाइल प्रोसेसर एसोसिएशन के प्रमुख जीतू वखारिया का कहना है कि श्रमिकों को इस माहौल में रोक पाना मुश्किल है। वह किसी भी शर्त पर रोक पाना असंभव है। उनकी माँग है कि उन्हें एक बार गाँव जा तक आना है।