वीतरागता की दिशा में आगे बढ़ने का साधन है प्रेक्षाध्यान : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण!

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आचार्यश्री ने प्रदान किया पावन आशीर्वाद

28.10.2024, सोमवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :

जन-जन को सन्मार्ग दिखाने वाले तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की ख्याति पूरे विश्व भर में प्रसारित है। डायमण्ड व सिल्क सिटी सूरत चतुर्मास के दौरान देश-विदेश तेरापंथी श्रद्धालुओं के अलावा अन्य विदेशी नागरिक भी आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में शांति की खोज व अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए उपस्थित होते रहते हैं। गत सात दिनों से 23वें अंतर्राष्ट्रीय प्रेक्षाध्यान शिविर के अंतर्गत रसिया, यूक्रेन, जापान, वियतनाम, भारत और बेलारूस से 44 शिविरार्थी पूज्य सन्निधि में उपस्थित होकर प्रेक्षाध्यान साधना में लगे हुए थे। सोमवार को महावीर समवसरण में इस अंतर्राष्ट्रीय शिविर का समापन समारोह था तो आज उपस्थित जनता के मध्य वे विदेशी श्रद्धालु भी उपस्थित थे। 

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सोमवार को महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को मंगल संदेश प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम में बताया गया है कि पाश का विमोचन करो, पाश से मुक्त हो जाओ। पाश का अर्थ होता है बंधन। जैसे किसी जाल में फंस जाने पर निकल जाए अथवा कोई किसी गलत स्थान पर फंस जाने के बाद वहां से निकल जाए। स्नेह का पाश भयंकर होते हैं। बंध औरा राग के कारण आदमी बंधन में फंस जाता है। मनुष्यों के प्रति अवांछनीय राग हो जाता है तो वह भी एक पाश होता है। 

मनुष्यों के साथ भी जो अवांछनीय राग और स्नेह होता है, वह साधना के क्षेत्र में त्याज्य होता है। पदार्थों के प्रति भी राग है, वह भी साधना के क्षेत्र में छोड़ने लायक होता है। यहां आयारो में बताया गया है कि मानव बंधन से मुक्त होने का प्रयास करे। आदमी के भीतर ममत्व, राग, मोह का पाश है, जिसमें वह बुरी तरह फंसा हुआ होता है। कभी मकान का पाश होता है, तो कभी परिवार का पाश में फंसा हुआ होता है तो कभी अन्य पदार्थों के पाश में फंसता चला जाता है। 

यहां जो अंतर्राष्ट्रीय प्रेक्षाध्यान शिविर लगा, यह प्रेक्षाध्यान अध्यात्म के संदर्भ में देखा जाए तो यह वीतरागता की दिशा में आगे बढ़ने का एक साधन बन सकता है। न प्रियता और न अप्रियता की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। भगवान महावीर केवलज्ञानी बन गए तो उनके मन में गौतम स्वामी के प्रति भी मोह नहीं रहा। गौतम स्वामी के मन में मोह आ गया था, लेकिन वे संभले और उन्हें केवल की प्राप्ति हो गई थी। 

राग और द्वेष दोनों ही पाश हैं। ऐसे पाश से आदमी को मुक्त होने का प्रयास करना चाहिए। प्रेक्षाध्यान में राग-द्वेष मुक्ति की बात बताई जाती है। अनित्य की अनुप्रेक्षा करना भी प्रेक्षाध्यान में निर्दिष्ट है। यहां बताया जाता है कि यह संसार और उसमें हो रही हर क्रिया अनित्य है। चाहें संबंध हो अथवा मानव का स्वयं शरीर भी स्थायी नहीं है। जिसके साथ संयोग होता है, वहां वियोग भी होता है। 

जैसे इस स्थान के साथ संयोग हुआ तो यहां हमारा चतुर्मास हुआ और अब चतुर्मास की सम्पन्नता के बाद यहां से जाना भी होगा। यहां संयोग हुआ तो वियोग भी होगा। ऐसी बातों को समझकर प्रेमानुबंध का विमोचन करने का प्रयास होना चाहिए। जहां राग है तो वहां द्वेष भी होता है। द्वेष की पृष्ठभूमि में राग ही होता है। यदि राग न रहे तो द्वेष टिक ही नहीं सकता। इसलिए आदमी को ऐसे पाशों का विमोचन करने का प्रयास करना चाहिए। 

आज आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में 23वें अंतर्राष्ट्रीय प्रेक्षाध्यान शिविर का समापन के संदर्भ में मंचीय उपक्रम रहा। इस संदर्भ में प्रेक्षा इण्टरनेशनल के मंत्री श्री गौरव कोठारी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। यूक्रेन के नागरिक श्री अलेक्जेंडर, जापान के श्री तोमोतादासाकामोतोशान ने अपनी-अपनी भाषा में भावाभिव्यक्ति दी तथा शान ने अपनी भाषा में गीत का संगान भी किया। जापानी नागरिकों ने लोगस्स के श्लोक को प्रस्तुति दी। रसिया की ओर से अनासतासिया सोकोलोवा ने अपनी भाषा में अपनी भावाभिव्यक्ति दी और अपने परिवार के साथ मिलकर गीत का संगान किया। वियतनाम की ओर से लेन एन और वियतनाम के अन्य उपस्थित सदस्यों ने अपनी प्रस्तुति दी और भावाभिव्यक्ति दी। 

आचार्यश्री के आदेशानुसार श्री रणजीत दूगड़ ने अपनी जिज्ञासाएं रखीं, जिसे आचार्यश्री ने समाहित किया। आचार्यश्री द्वारा दी गई आशीर्वाद रूपी वाणी को सभी देशों के प्रतिनिधियों ने अपनी-अपनी भाषा में अनुवाद रूप में प्रस्तुत कर अपने लोगों तक आशीष पहुंचाने का कार्य किया। कार्यक्रम में पद्मश्री प्राप्त दिव्यांग कन्नू भाई ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।

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