सूरत महानगर पालिका के आज घोषित परिणामों ने बीजेपी के खेमे में खुशी, आप के खेमे में उम्मीद की लहर और कांग्रेस के खेमे में सन्नाटा फैला दिया है। बीजेपी को मनपा के चुनाव में 93 सीट मिली हैं जबकि आम आदमी पार्टी को पहले ही चुनाव में 27 सीटों की सफलता मिली है। दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी अपना खाता खोलने में भी असफल हो गई है। कांग्रेस के लिए बहुत ही शर्मजनक परिस्थिति बनी है।
पिछले चुनाव में भाजप की 80 सीटें आई थी जबकि कांग्रेस की 36 सीट थी और कांग्रेस ने विपक्ष की भूमिका निभाई थी लेकिन इस बार कांग्रेस को संतोष के लिए एक सीट भी नहीं मिली है। आपको बता दें कि कांग्रेस की हार के लिए तीन-चार बातें जिम्मेदार मानी जा सकती हैं। शहर का नया सीमांकन भी नुकसानदायक साबित हुआ। इससे कांग्रेस के समर्पित मतदाता कई क्षेत्रों में बंट गए। जहां कांग्रेस की जीत थी। वहां भी मुश्किल हो गई। हालांकि भाजप के लिए भी बहुत खुश होने जैसा नहीं है क्योंकि जहां कांग्रेस गई वहां दूसरी और उसके स्थान पर आप पार्टी आ गई।
1995 में भी कांग्रेस को सूरत महानगर पालिका में एक भी बैठक नहीं मिली थी। इसके 26 साल बाद फिर से भाजप का रोड रोलर चला और कांग्रेस शुन्य पर सिमट गई। इसके अलावा कांग्रेस ने टिकट बांटने में पाटीदार फैक्टर की अवगणना की यह भी उसे भारी पड़ा।
पाटीदारों ने कांग्रेस से जितनी सीटें मांगी थी उतनी नहीं मिलने के कारण भी चुनाव के अंतिम दिनों में कांग्रेस की बाजी पलट गई। पाटीदारों ने पहले से ही कांग्रेस को कह दिया था कि इस बार कांग्रेस को चुनाव जीतना मुश्किल होगा जो कि उन्होंने साबित कर बताया। हर बार की तरह आप एक बार फिर से कांग्रेस अपनी हार पर मनो मंथन करेगा और हो सकता है कि इस्तीफे की झड़ी भी लगनी शुरू हो जाए।
जानकारो का कहना है कि परप्रांतिय क्षेत्रों में भी कांग्रेस के आला कमान प्रत्याशियों के चयन में थाप खा गए। कार्यकर्ताओं का आरोप है कि कई स्थानों पर तो कार्यकर्ताओ की बात की अवगणना की गई। चुनाव अभियान में कोई बड़े नेता नहीं दिखे। और ना ही कई क्षेत्रों में प्रत्याशी ही मतदाताओं तक पहुंच पाए।